विचक्षण वाणी | Vichakshan Vani

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Vichakshan Vani by प्रेमसिंह राठौड़ - Pemsingh Rathaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(दे बिहार के पूव रितॉरि २११६३ को सायरर अधिदारों थी बलमडरामजी हुम्मट साहब के समापतितद में एक हनेह सम्मेत्न के लापोजन छिपा एया ! इसमें पूरप मुनि थो सूलव दसों म० सार मो बारे थे ! इस सम्मेलन में पुम्प साप्दोजो महाराज सा को समन्ययन सापिका बी उपापि से थी सप हारा विभूषित रिया गया । चातुमाँत काल में वृज्य स्ाष्दोज! के साप उसकी भाताजा धूरय वित्तांत थी जो स७ साहुद, पिदुषो झविचछ् थ। जा भे साहुद रतअभ में विराज हुए प्रमोद धघाजों महाराम सा! घड़कतां घीजी महाराज साहब मे ौहरभ्रासी महाराज सा सुलोचना घीजो महाराम सा. पुइगापां श्री मो सहारात सा० मणिय्रमों श्राजो महाराज सा तथा मतोरमत भाजा स* विराजमान दें ( इनशो अनुझूरशोप आाइग जीदनयर्यों, टुड़ चरित्र पहन तथा झनुासमातमर जीवन से सभी को प्रभादित शिया हूं । दिनाश ७ है १९६३ को आपका दिहार स्टोन पर हुमा । स्टेगन पर झद्दाई महीत्यव रादि को मश्ति तथा गति हनाद पूदा को झापोभन (सपा भपा । थ्री भर्भातरक्त भद्िणा मभ्इल पाए जाग रण मो डिपा गया । यहूं परम सोमाग्य हो बात थी हि इए शवगर पर तपायध्छोप पूर्य फलगू थोजी महाराज हा मो हटेरान पर पथारी सपा वहां कुछ दिनों तक्ष पूर्प जिचलश थी थी महाराज सा दे शाय सापगे प्रदषा हुए । हटरान पर शनता के झति भावपूर्ण बादहू पर आप र३ दि तह विराजो। रटरान झप्र सें इस प्रशर के भप्य लायोजन करने का क्षय मायकर झपिकारी थो दछमदराजडी कुमट, शव थी सेठ भहुयालालजों करपंप भांगोलालजी विज्पदर्षीय रुपचरदखो करवड्ियां, शशमलजी भडारिया, सागरमलजो सौमाप्यमणजी छामेड़ रामरपमणजी व तया श्री पारतनाप लन मित्र मण्डल के समस्त का्पकर्तोओों थो है । दिनांक १८ १४ ६३ को आपका दिहार स्टेगान से सेजायता पाम हमा । इस भवसर पर हुरारों नर-नारियों न समपूण तयनों से हो 7 दो, वहु दृय्य हि दीं भा सश्ता हैं । पुर्प




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