समाधि - मरणोंत्साह - दीपक | Samadhi - Maranotsah - Deepak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सस्पादकीय श्टे नेक जिन-मन्दिर बनवाये छौर उनमें अनेकों जिन-मूर्तियोंकी प्रतिछा करवाई । इनके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियाँ राजस्थान और गुजरातमें उपलब्ध होती हैं । यह बताना कठिन है कि उन्होंने अपने जीवनमें कितनी प्रतिछ्ठाएँ कराई थीं । पर इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि सं० १४८४७ से १४६७ तककी इनके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियाँ मिलती हैं। इन्होंने ३४ वर्षकी आायुसे लेकर ५६ वर्षकी छायु पर्यन्त ' लगातार २२वर्षतक बागड तथा गुजरात प्रान्तमें विहार किया था । नोगांवमें नन्दीश्वर ट्वीपके ५२ चैत्यालयोंकी स्थापना कराई थी । सं० १४८२ में डूंगरपुरमें संघपति नरपालके समयमें दीक्षा-महोरसव किया गया था । सं० २४८२ में गलियाकोटमें “चाय” पद स्थापन किया और चतुर्विशति-जिनबिम्व-प्रतिष्ठा संघपति मूलराजने कराई ।. 'काइलि” नामक स्थानमें भी प्रतिष्ठा कराई गई थी । नागद्रह्द ( नागदा ); जो उद्यपुरमें एकलिंग मंदिरके पास ही खण्डहर स्थान है, किसी समय राजधघानी था और सम्रद्ध नगर था । यहाँका प्रसिद्ध राजा जैलसिंह था। यहाँ १३ वीं, १४ वीं शताच्दीमें व्नेक जैन-मन्दिरोंका निर्माण हुआ था । उनमें कुछ खण्डहर हो गये ओर कुछ व भी मोजूद हैं। इस नागद्रहमें संघपति ठाकुरसीहके ' अनुरोधसे जिनबिस्ब-प्रतिष्ठा हुईं थी। डूंगरपुरमें भी सं० १४९० सें वैशाख सुद्दी ९ शनिवारको आदिनाथकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा कराई गई थी ध्योर १४ तीथकरोंकी मूर्तियोंकों भी प्रतिष्ठित किया गया था । सकलकीतिने च्यसेक तीर्थोंकी यात्राएँ भी की थीं । इन सब धार्मिक प्रवृत्तियोंसे सकल- कीर्तिकी धार्मिक रुचि एवं श्रद्धा विशेष एवं व्यापक जान पड़ती है । साहित्य-रचना : सकलकीर्ति न केवल धर्म-प्रभावक श्राचाय थे, किन्तु वे साहिस्य- ख्ष्टा भी थे । उनके द्वारा रचित लगभग ३७ मंथोंकी सूचना सिलती




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