समाधि - मरणोंत्साह - दीपक | Samadhi - Maranotsah - Deepak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सस्पादकीय श्टे
नेक जिन-मन्दिर बनवाये छौर उनमें अनेकों जिन-मूर्तियोंकी प्रतिछा
करवाई । इनके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियाँ राजस्थान और गुजरातमें
उपलब्ध होती हैं । यह बताना कठिन है कि उन्होंने अपने जीवनमें
कितनी प्रतिछ्ठाएँ कराई थीं । पर इतना तो अवश्य कहा जा सकता
है कि सं० १४८४७ से १४६७ तककी इनके द्वारा प्रतिष्ठित मूर्तियाँ
मिलती हैं। इन्होंने ३४ वर्षकी आायुसे लेकर ५६ वर्षकी छायु पर्यन्त
' लगातार २२वर्षतक बागड तथा गुजरात प्रान्तमें विहार किया था ।
नोगांवमें नन्दीश्वर ट्वीपके ५२ चैत्यालयोंकी स्थापना कराई थी ।
सं० १४८२ में डूंगरपुरमें संघपति नरपालके समयमें दीक्षा-महोरसव
किया गया था । सं० २४८२ में गलियाकोटमें “चाय” पद स्थापन
किया और चतुर्विशति-जिनबिम्व-प्रतिष्ठा संघपति मूलराजने कराई ।.
'काइलि” नामक स्थानमें भी प्रतिष्ठा कराई गई थी ।
नागद्रह्द ( नागदा ); जो उद्यपुरमें एकलिंग मंदिरके पास ही
खण्डहर स्थान है, किसी समय राजधघानी था और सम्रद्ध नगर था ।
यहाँका प्रसिद्ध राजा जैलसिंह था। यहाँ १३ वीं, १४ वीं शताच्दीमें
व्नेक जैन-मन्दिरोंका निर्माण हुआ था । उनमें कुछ खण्डहर हो गये
ओर कुछ व भी मोजूद हैं। इस नागद्रहमें संघपति ठाकुरसीहके '
अनुरोधसे जिनबिस्ब-प्रतिष्ठा हुईं थी। डूंगरपुरमें भी सं० १४९० सें वैशाख
सुद्दी ९ शनिवारको आदिनाथकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा कराई गई थी ध्योर
१४ तीथकरोंकी मूर्तियोंकों भी प्रतिष्ठित किया गया था । सकलकीतिने
च्यसेक तीर्थोंकी यात्राएँ भी की थीं । इन सब धार्मिक प्रवृत्तियोंसे सकल-
कीर्तिकी धार्मिक रुचि एवं श्रद्धा विशेष एवं व्यापक जान पड़ती है ।
साहित्य-रचना :
सकलकीर्ति न केवल धर्म-प्रभावक श्राचाय थे, किन्तु वे साहिस्य-
ख्ष्टा भी थे । उनके द्वारा रचित लगभग ३७ मंथोंकी सूचना सिलती
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