पंचदशी | Panchadashee

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Panchadashee by विद्यारण्य स्वामी - Vidyaranya Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ड थे | चतुथे जाधस में इन का नाम 'विदारण्य' हो गया था । इनके पिता का चास 'मायण' और साता का नास “श्रीसती'था । 'सायण' श्र 'शोग- चाथ' नामक दो छोटे भाई थे ।. “सर्वज्ञविष्यु तथा 'भारतीती्थ' नाम के इनके दो गुरु थे। पूत्र आश्रम में राज्य के कार्य में परम प्रवीण रहते हुए इन्होंने भसाघारण योग्यता से उच्च कोटि के श्रम्थ बनाकर वेद शास्त्रों की प्रतिष्ठा भी बढ़ायी थी । फिर संसार से विरक्त दोकर संन्यास दीक्षा लेकर विद्यारण्य सुनि नाम से श्ड्डेरी सठ के रकराचार्य बने थे । जिस कुटम्ब में ये उत्पन्न हुए थे यह एफ छोटा सा श्राह्मणकुटटम्द था। इस झुटुम्व के सभी, चाठक चढ़े चुद्धिमान गोर कठूव्वशाली हुए । साथण तो चेदभाप्यकार के नाते प्रसिद्ध ही हैं । शोगनाथ सो शीघ्र ही संन्यासी हो गये थे । ये साधवाचाये स्वर्य पढ़ पढ़ाकर नयी अवस्था! सें ही तपस्या के खिये बच चछे गये थे । जब ये बन में तपस्या कर रहे थे तत्र हुक घुक नाम के राजपु्रों से भेंट होने के बाद सन्‌ १३९१५ तक इस सहापुरुष का सारा ही समय भारी राजनेतिक क़ारवार, अत्यन्त गहन और उपयुक्त ग्रन्थों के निर्माण भर शंगेरी पीठ के स्वामी की हैसियत से 'घर्साधिकार चलाने में बीता था । उन्होंने एक श्रें्ठ कमंयोगी की भाँ ति निप्काम घुद्धि से राज्यस्थापन और धर्म रक्षण के कार्य करके आये संस्कृति को. जीवित रक्खा था । वे किस सनोमावना से अपना निप्काम कस करते थे यह इनके पंचद्शी के-- “ज्ञातिताचरितुं शक्य सस्यग्‌ राज्यादि लीफिकमू” “ज्ञानी लोग राज्य आदि लौकिक कार्मों को भच्छी तरह से चला सकते हैं । जानी का ज्ञान यदि परिष्कत है सच्चा है तो राज्य के गहन कारवार भी उसे दुबा नहीं सकेंगे” इस वाक्य से बहुत ही स्पष्ट हो जाता है। इन्होंने उस राज्य से किस प्रणाओी से क्या क्या सुधार किये इसका ब्योरा भभी तक भी इतिडासक छोग नहीं बता सके हैं।




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