जैनों क इतिहास | Jainon Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 इस उपनिषद्‌ में कुछ संवाद विदेह में (वर्तमान मिथिला) में हुए थे--जो कि मगध से अधिक दूर नहीं है--जहाँ ये दोनों महान्‌ गुरु अपना धर्म प्रचार कर रहे थे । इस प्रकार स्थान और समय में-उपनिषदिक एवं बौद्ध-जैन-युग--दोनों एक दूसरे के ज्यादा दूर नहीं है। फिर भी ऐसा लगता है कि दोनों की दुनिया अलग-अलग हो। उदाहरणार्थ हम बृहदाकारण्य उपनिषद्‌ के उस प्रसंग को लें जिसमें विदेह के राजा जनक याइवलक्य से प्रश्न पूछते हैं : जनक बिदेह: हे याज्ञवलक्य जब सूर्य अस्त हो जाय, चन्द्रमा डूब जाय, अग्नि समाप्त हो जाय और ध्वनि शांत हो जाय, तब मनुष्य के लिए कौनसी ज्योति बच जाती है ? याज्ञवलक्य: आत्मा ही वास्तव में प्रकांश है, क्योंकि केवल आत्मा में प्रकाश होने से ही मनुष्य बैठता है, चलता है, अपना कार्य करता है और लौटता है। जनक विदेह: वो आत्मा कौन है ? याज्ञवलक्य: वो जो ददय में अदस्थित है, जो प्रार्णों (संज्ञाओं) द्वारा आवृत्त है, जो ज्योतिर्मय है, ज्ञानवान है। स्पष्ट है कि ये प्रश्न और उत्तर पारलौकिक हैं। उनका किसी मानवीय क्रियाकलापों से सम्बन्ध नहीं है। इसकी तुलना में हम उन प्रश्नों पर विचार करें जो मगध के सप्राट अजातशत्रू ने उन छः अवैदिक संतों से पूछे थे जो उसके साम्राज्य में धर्म प्रचार कर रहे थे। उनमें से एक स्वयं महावीर नाय पुत्त भी थे। जो प्रश्न मगधघ सम्राट अजातशत्रु ने पूछा वह इस प्रकार था : “दुनिया के विभिन्‍न धंधों में होने वाले लाभ की जानकारी सभी को है परन्तु क्या तपस्या से होने वाले लाभों को बतलाना संभव है ?” “सन्दिधिक्कम सामन फलम”। सभी छः गुरुओं ने अलग-अलग उत्तर दिये। इस क्षण उन उत्तरों से हमारा कोई सरोकार नहीं है परन्तु जो बात ध्यान देने की है वह यह है कि यह प्रश्न बिल्कुल सांसारिक है और एक राजा के लिए बहुत ही स्वाभाविक भी, परन्तु राजा जनक ने जो प्रश्न पूछे थे वे बिल्कुल अन्य धरातल के थे। इस प्रकार हम एक प्रमेय (सफ़फ़०00८55), मान लेते हैं कि हम दो भिन्न जातियों के बारे में बाद कर रहे हैं--एक अवैदिक और दूसरी उत्तर वैदिक--जिमके दृष्टिकोण एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। बौद्ध शाख्रों के अनुसार उस समय उत्तर भारत में 16 जातियां रहती थीं। जहाँ वे रहती थीं उन स्थानों के नाम भी जातियों के नामों के अनुसार पड़ गये थे। उन जातियों में कुरु, पांचाल, मच्छ, सौरसेन--उत्तर वैदिक एवं ब्राह्मण धर्म के मानने वाले थे। अपने धर्म के बारे में बुद्ध ने और जिस पुराने धर्म में महावीर ने सुधार किये--और जिन लोगों को उपदेश दिये थे वे मागध, अंग, कासी,




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