विशाल शब्द सागर | Vishal Shabd Sagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
148.81 MB
कुल पष्ठ :
1564
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंतर्वाष्प, झन्तवॉष्प
झंतर्वाप्प, झन्तर्वाष्प [संज्ञा पु.] (स'.)
दुःख जिसमें आांसू न निकलें। ' . ''
शंतर्विकार थन्तर्विकार [संक्ता. पु.] (४) शरीर |'
का विकार जैसे भूख, प्यास इत्यादि। ..
अंतरेंग, झन्तवेंग [संज्ञा पु.] : (सं) मेन के:
भीतर की चिन्ता । भीतंरी व्याकुर्लता ।
श्रतरवेगीज्वर, झन्तर्वेगीज्यर [सत्ता पु.] -()
एक प्रकार का र्वर जिसे कप्रग्वर भी. कहते
इसमें रोगी फे भीतर दाह, प्यास, चफर,
सिरद्द तथा पेट में पीड़ा होती है।
सतचद्, अन्तवद [संक्ता पु] (#.). ₹--गयसा
तथा यमुना के मध्य को. देश । ; घाव ।
र--दो श्राव। ३--य्ट देश जिसमें यत्त
फरने की वेदियां हों। '
झंतर्ेदी, भन्तवेंदी [६वि.] (सं) गंगा तथा यमुना
'.. के घीच के देश का रदने घाला। श्नन्तर्वेद का
निवासी । '
शतचंध, अन्तबंध [संक्ञा पुर] (सं) “शरीर की
यांठों में होने वाला दुदे 1...
सवचरम, भन्तपरम [संक्ा पुर] (सं), उनान-
खाना । 'घन्तःपुर ।
श्रंतर्वाशिक, श्रन्तर्पेशिक [संता पु.] (४३ 'अंत
पुर का रत्तक ।, जनानखाने का पहरेदार्.!
झंतर्वेश्मिक, भन्तर्वेश्मिक . [संह्ा-पु.] (0)
.. शन्तःपुर की रखवाली करने घाला ।
अतहास, अन्तहास [संघ पु.पु (सं भीतर ही
मीतर हँसना । शुप हँसी । सुस्कराहट: ।
झंदर्दित, श्न्तहिंत [िनु (से पटश्य । छिपा- |.
हंस | गायव। गुप्त । विरोहिंत।
अतलघु, अन्वलघु [संक्षा पु] (से) दरें. का
घहद. वर्ण, 'जिसके ' झंत में 'लघुवणे अथवा |!
मात्रा हो। ऐसा शब्द जिसका श्वन्तिम चर्ख |!
लघु झे
कि अन्तवण [संज्ञा पु] (से श्वन्विम चर
का 1 शुद्र
धंतविदारण, श्रन्तविदारण [संप्ा पु (४)
सूये '्ीर चन्द्रमहण के दस मोक्ों में से एक
भत्ता, .अन्तचला [सा स्त्री व (ते अन्तिम
समय । मरणकाल । नाश. का .समय ।
'अवराप्या, झन्तशय्या सिंघा स्त्री, (के) १--
खसत्युशय्या । * र--श्मशोान । मरघट 1 .. रे
सत्खु ”
अतरदंदू , अन्तरछद [संज्ञा पु (ं.) भीवर
का तल । मिद्राव केनीचे/का तल]
अत्तसू , अन्तसू [संज्ञा पु (सं) भन्तःकरण ।
हृदय 1'चित्त। सन 1: एफ
श्रतसदू ', अन्तसदू पू-संज्ञा पु. गे (सं) चेलो |
शिंप्य । “एप 12
भतसमय, अन्तसमय संज्ञा. पु (3 न्ेन्तिम
संभय ।'मंरणकाल 1 मुद्युकाल्न 1 - : «मी '
(६3
भीतरी उप्णता ।
मध्यचर्ती । चीच का ।
प्न्तस्थ कहदल,ते हैं । स्पर्श तथा -उपध्सवर्णों
चीच घाले-च्णे.। द
:. के भीतर का । अन्वतश्फप्ण फा। २--मीतरी ।
भीतर स्थित +
समाप्ति पर किया जाने चला स्नान 1
श्रंतरसलिल, अ्रन्तस्सलिल [वि.] (व) जिसके
जल काःप्रचाह भीतर हो चाहर न दीखे ।
प्रतरसालिला, श्रन्तस्सलिला संता स्त्री (सं.
: , - सरसचती नदी । फल्टु-नदी ।
घंताराष्ट्रीय, अन्ताराष्ट्रीय -[वि.] .'देखो “अन्त
राट्रिय । ः
प्ातों का समुदाय ।
२--परप्रश्य चंशे 'यथा 'चारढाल याद ।
अंतावसायी, श्न्तावसायी [ संक्ञा घु. ] (हं. )
' ' श-नाई ! हलाम। र--ईिंसेक । घारडाल ।
पड़ोस । समीप ।
पास 'का
अंतिकता, 'अन्तिकता [संझा स्त्री.) (व) पड़ोस
हृद दर्जे -का। 'चरसे 3
महाम्रस्थान । धन्तिम सफर। घन्तकाल 1
सृत्युग, मीत 1 ! 3
!_ जनानख़ाना।
छंतिमेरथमु, अस्तिपरेस्मू [लंच
ः दर । 'पल्ट
झतवासां, सा [संज्ञां पु. (सं १--चेला
शुरु के पास रहने वाला!।.रे-->गांव के चादर
रहने! घाला.। श्न्त्यज 1: चाणएडाल 1 ः
“की. वह: इन्द्रिय जो 'संकलप-विकल्प, निश्वय:
स्मरण तथा सुखदुखादि का अनुभव करती है
!. ₹-मन को शुद्ध करने वाला: के 1: रे
प्रकट फर्म, ; -.. .
दंतःकोप, श्रत:कोप चघि.] (स'.) मन के रांदर
का कोघ: 1: मानसिक कोप
ंत्तस्ताप, श्न्तस्ताप [संज्ञा पु.] (सं) श्रान्तरिक
ठग्स | मानासिक व्यथा। चित्त का संताप 1]
... “| संत्तस्थ, अ्न्तस्थ पवि.] (संग १--मभीठर का ।
सिंघ्ता पुन (व) य, र, ले, च यदद चारों चणे
ंतस्थिति, अन्तस्थिति [वि.] (सं) ९--हृदय
अतरनान, अन्तस्नान [संज्ञा पु.] (.) यज्ञ की
्रंदावरी, श्रन्तावरी [संज्ञा स्त्री,] (हि) 'घन्तद़ी
'ंतावशायी, श्न्तावशायी [ संझा पु. ] (2)
श्-गाप कीं सीमा के घाहर चसने वाला ।
भंतिक, थन्तिकं [वि.] (सं) पास । निकट ।
झंतिकतम, झन्तिकतमं [वि.] : हे) बिलकुल,
अंतिम, अन्तिम पचि.] (४3 अन्त का । 'संबंके 1:
पीछे का 1 आखिरी । र-सबसे' चढ़कर.
अंतिमयात्रा, अन्तिमयात्रा. [[संज्ञा स्त्री] (3
श्रंतेवर, श्न्तेवर [संज्ञा पु (ंक 'यंन्तसुर। | _
पं [संजय ] (कए) |
श्रंत/करण, अन्तःकंरण [संज्ञा पु.] (४) :भीतर
अतमक्रया, अन्तमंक्रया संज्ञा,स्त्री. मे (2.
सुख, सुख
पत:कोप, श्रन्त:कोप संज्ञा पु 3 (सह भरडार
घर का भीतरी कमरा 1
अंतःपट, अन्तःपट [संक्ा पु.] (त) विवाह के
छावसर पर वर तथा' कन्या के बीच
' लगाया जाने वाला'चस्त्र विशेष ।
'अंतःपटी, अन्त।परी [संज्ञा स्त्री.] (8) १--
नाटक का परदा । र--परदे पर चित्रित पचत
नगर, वचन छादिक दृश्य ।
अंतःपरिघी,अन्तःपरिधी : [संज्ञा स्त्री.] (स
१--घेरे अथवा परिधि का भीतरी स्थान।
र--सीन हरी लकड़ियों द्वारा -यज्ञ के लिए
घेरा हुआ चीच का स्थान ।
झंतःपवित्रा, अन्तःपचित्रा [वि.] (8) शुद्ध
:.. चित्त चाली । निमल छन्तःकरण घाली ।
अंतःपुर, अन्तःपुर [संज्ञा पु.] (8. मदल के
भीतर स्त्रियों के रहने की जगदद। रनिवास 17
'. जनानखाना।
अतःपुरप्रचार, अन्त पुरप्र चार सिंक्षा पु 3 (सिर.
स्त्रियों की गप्प । प्रपंच ।
छंतःपुरिक, झन्तःपुरिक [ संज्ञा पु..] (सा. )
जनानखाने का पहरेदार दरेदार : । झंतः्पुर रक्तक ।
फंचुकी ।
झतःपूजा, अ्न्त:पूजा [संज्ञा स्त्री-] (स .) कल्पित्त ,
1. घरतु द्वारा देवता .की पूजा। इच्छित फल
प्राप्ति की ाशा में चढ़ावा चोलना ।
उंतःप्रज्न, अन्तःप्रज् . [संज्ञा पु.] (सं) श्वास
:* -क्तानी । सस्वदर्शी ..
अंत:शरीर, अन्तःशरीर [संज्ञा पु.] बेदान्त के
छानुसार स्थूल शरीर के श्रन्द्र' का सूचम
शरीर । लिंग शरीर ।
_अंत:श्य,-श्रन्तश्शल्य [वि] (त 3: सर्मसेदी
गांसी के समान हृदय सें चुभने वाला ।
[ंतःशुद्धि, झ्न्तःशद्धि, [ संज्ञा पुन] (सं) हृदय
'. की पवित्नता 1: अन्तः्करण की ,सिमलता। -
! _ दिल की सफाई ।
अतःसज्ञा, अन्तसन्ना ..[ संज्ञा पु.) (स:- वह -
1. जीव जो 'झपने सुख-दुग्ख, के व्मनुभव .को
प्रकट न कर सके यथा-नचृक्त या पद ।
उंतःस॒त्वा, झन्तःसत्वा [बि.] (सा गर्भवठी। '
हामला। ह
संज्ञा पु.] मिलांचा । क
झंतःसारं, अन्तःसार [संज्ञा पु.] (स ) ांतरिकं
1. तत्व । रुररुती 1 न
_ ' वि्ु जी भीतरोंसे खोखला न हो । जिसके *
भीतर कुछ . तत्व हो । . जिसके भीतर कोई
प्रयोजनीय पंदाथे हो । «. ः
उअतःसारवान, अन्त सारवाम घि.ु, (व) जो
पोला न.द्ी । -जिसके, भीतर कुछ तत्व हो
काम,का-! प्रयोजनीय 1 तत्व पूरण
ंत:स्वेद, झन्तःस्वद [संज्ञा पुर] (स) होथी । ,
अंत/सुख, अन्तःसुख . [वि..] -(स जे ात्मा-का
1
उय । दा
पर
सुख! .....
User Reviews
No Reviews | Add Yours...