रामतीर्थ - गीतावली | Ramtirth - Geetawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुत्र - रन को पाकर भी,
दोहा--इस प्रकार महराज ने,
ईश्वर के झब प्रेम,
श्रव मरती का ध्रापके
पज्ाव प्रॉत में झापका,
नहीं हृदय ज़रा हर्पाया है ॥
किया हुई को दूर।
में रूंगा हृदय भरपूर ॥
उमड़ उठा दरियाव ।
फैन ज़ब॒ प्रभाव |
( श्रोनारायणदातत और रामतीथजी की मेंट |
उन दिनों पंजाब-प्राति में एक,
सत्यार्थप्रकाश थे पढ़ें हुए,
जब कभी किसी उपदेशक को,
तो 'धपना काम इज करके,
जब से नारायणदासभी ने
तो उनसे भी भिड़ने के लिये,
पर इनके तार्किहपन के कारण,
श्रीनारायशदासजी रहते थे ।
श्रौर तक-वित्कं चहु करते थे ॥।'
बह श्राया सुन पाते थे।
कट उनसे जा भिड़ जाते थे ॥
गोसाइ'जी का नाम सुना।
कुछ दिल इनका उछला-कूदा ॥
सब इनसे धबराते थे।
जय यद्द गोसाइ से मिलना चाहते, तो लोग ठासा कर जाते थे ॥
एक रोज़ एक मित्र इनके,
प्रख इनसे यह करवा करके ।
खामोश '्रगर तुम रहो वहाँ, तो चलन में साथ लिया करके ॥
दोह्ा--श्रीनारायणदास
थे,
इस कारण इस शत को;
दर्शन को. तैयार ।
किया तुरंत स््रीकार ॥
फिर नारायण चल दिए, सित्र * सद्दिति हर्पाय ।
कुछ ही'समय के चीच में, गए वहाँ पर '्राय ॥
श्रीराम के दर्शन होते ही
या यों सूर्य का प्रकाश देख,
उन नयनों को, उन वैनों का,
उस सीरत का, उससूरत का,
ऐसा कु जब प्रभाव पढ़ा,
श्रीराम की सूरत तकते थे,
नारायण का सब आम भागा ।
सम्पर्ण विश्व का तम भागा ॥
उस भोले-भालि चेहरे का--
उस प्रकाशवाले सुखड़े का--
नारायण रह गए घकित होकर ।
नहीं बोल सकें एको श्रक्षर ॥
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