ईश्वर कौन है ? कहाँ है ? कैसा है ? | Ishwar Kaun Hai ? Kahan Hai ? Kaisa Hai ?
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९७ )
दर घड़ी परे सस्तबल से भागजानेिके लिए ररसा वुह्ानी रद्दठी
हं। थदि उन्हें जरा भी अवसर, निर्भया एवं स्तच्छुस्द्ता प्राप्त
एो सो दे सिंपा। लाग। पीछा देग्ये मसुप्य की सामाजलिकताकों नष्ट
भरवे रे पुतः पशु स्वभाव पाला झपार्पिक लगा देसी टै ।
च्ष पाठक समने, होगे कि परमेशास्त्र का मुख्य प्रयोजन
परया है ? सारे धर्म शाखों का मेंघन कर दालिए उनकी अनेक
राधानों का उद्देश्य यदद है कि लोग अपने स्वार्थ को दनाये स्ट
चपनी लालसाथों फो अत्यत उप न दोने दे, पशु सरकारों को
नंगा दोकर प्रकट न होने दें, चर्नोकि इसके दिना समाल से सर
शान्ति मद्दीं रद सकती ! धर्माधरण के हिना सारा एमाजश
बरशों, उपद्रवों, अत्या पारों, पी़ाओं का घर चने लायगा, कोई
थी पैम से न घेठ से या ।
प्राचोन समयके च्यदस्थाकार बढ़ सूरम दुर्शी थे । उन्ददोंने
घर शाजों की रचना री, नियम बनाये, बात पत्र पोपित
दिये, पर साथ दी यद्द भी अतुभद छिय। फि यद शालाघार
दिन किखी बठोर निंप्रण के चिरस्णई न रहेगा । वासनाछों
षी प्रबलत। के सामने बद् सब धर्म संत्र भोधी पे परो समान
रढ़ जारगा। पुस्तक में लिखा है, मनु मददारान ने कह! हैं, इतने
सात से संदोप कर लेते दाते बयक्ति इधर दृष्टि पर धहुद दी कस
भाप छिये सा बडे है । इद्वन दो इंच थोर लोभ दारादी संभव
हे। पु को एक स्थान से दु्चरे स्थान पर तले शाता दो 58ो दो
दो उपाय हैं या दो इसके मुह ४ पे दाना रस्वहे लाइये और
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