दो भाई | Do Bhai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.75 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अआणदान 1 ऐड !
जरा
ठीक नहीं । मददारान्न की आज्ञा का पाज्व काना चाहिए £? तो
जल चठे थे वे । भर
वोल्े- क्या
“दिल्ली चलने का 'आांयो जने . . . ८ « ने”
दिल्ली ९... असम्सवे . . ।” वीद में वात कार्ट कर
चबल पढे थे वे, “बेठे-चिठाएं अकबर की श्ाधीनता रवीकार
कर लें । अपनी सान मयादा झकवचर के चरणों में जाकर, विस
सजित कर दे , ..। क्यों... . ८ « 01
६६ परे
कक के के के का के थे मी की डे
“इसने हाथों में चूद़ियां नहीं पहिन रखी है। जयचन्र
का उग्ण लू हुमारी घमनिपां में शुष्क नहीं हो गया है. । भी
राठोड़ों की तलवारों का पानी उतरा नहीं श्रीर न ही भालिं की
नॉकें कुरिडित हो गई है। श्रगर एक चार सारी मुगलवाहिनी
इम पर टूट झाजाय तो ऐसे दांत खट्टे कर दें कि फिए झेक
चर को इधर आंख उठाकर देखने क। साहस 'न हो सके /”
' * “केवल भ चुक बनने से कुछ नहीं हो सकता !” कहने
लगी में, “सन के लडडूओं को और 'संधिक मीठा करने के
ातिरिक्त झापकी भावुकता ओर छुछ नहीं कर सकती ] मुसल
मानों के श्रातट् से आज सारा देंश त्रस्त है । उनकी राउ्य-
लिप्सा 2वं ऐश्वर्याकांत्ा हमारी संस्कृति; सभ्यता और मेभव
को विनाश कर रही है. । श्वाश्चयं तो यह है; कि हमारे ' ही भाई
क दूर हे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...