विधवा | Vidhwa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vidhwa by राजाराम शुक्ल - Rajaram Shukl

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजाराम शुक्ल - Rajaram Shukl

Add Infomation AboutRajaram Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ६ ) विघवा-विवादद के निषेघधात्मक नियम के अपवाद कहे जा सकते हैं । रही सम्तान-बृद्धि वाढी बात--सो जितनी संख्या पू्ण त्रम्दचय द्वारा बढ़ायी जायगी, वह इस प्रकार बढ़ायी हुई संख्या से सब प्रकार अधिक महत्वपूर्ण होगी । उचित तो यह था कि. दम बाल-विवाह और वृद्ध- विवाह आदि कुरीतियों को रोकने. पर अधिक ज़ोर देते, अपने चरित्रों का खुघार करते, विद्या-प्रचार की ओर अधिक ध्यान देते और समाज के सडठन में उत्ते जनापूर्वक लग जाते, जिससे ये सब कुर्रीतियाँ भी दूर हो जातीं और हम लोगों में आत्म-संयम और आत्म-बढठ उत्पन्न ोता । जिस देश का आदूश आजन्म ब्रह्मचयें हो, उसो देश में यह इन्द्रियछोलु- पता क्या द्ास्यास्पद नहीं है ? स्त्रियों में विशेष रूप से अविद्या का सामाज्य है । इसी के भयावद्द परिणामों से हम ऊचे नहीं उठने पाते । अधिकांश स्त्रियों का का्येेत्र चौका-अ्तेन भर रोटी तक ही परिमित है । अनेक श्रीमतियों का जीचनादर्श विषय, विछास, विनोद और कलह है ! यदि विधवाओं में विधा प्रचार हो और उन्हें पुनर्वि वाद के पचड़े में न फैँसायी जाकर उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाय, तो उनके लिए कितना विस्तृत काये-झेत्र है , इसके अतिरिक्त चरखा, सीना, पिरोना, स्त्रीचिकित्सा इत्यादि अनेक्र कार्य ऐसे है जो उनकी जोविका के प्रश्न को चुटकी बजाते हल कर सकते हैं। विघवाओं का विधमिंयों के साथ हो जाने का प्रधान कारण यह है कि! हम उनके साथ दुव्य॑ बहार और अत्या- चार करते हैं । हमने अपने हृदयों की दुर्बठता दिखाकर तथा स्व चछाचारी द्ोकर स्त्रियों के हृदय में विश्वास जमा दिया है कि हमारा प्रेस उनके साथ उनके इसी जीवन तक हि.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now