चुनाव पद्धतियाँ और जन सत्ता | Chunav Padhatiya Aur Jan Satta

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Chunav Padhatiya Aur Jan Satta by आचार्य नरेन्द्र देव जी - Aacharya Narendra Dev Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६] पेदा हुई निराशा से प्रभाधित दोते हैं, अथवा उनका चुना हुआ मतिनिधि उनके दितों के विपरीत कु कददता या करता दैं, तथ्र थे उन्दें यदद सममाने की ,चे्टा घरते हैं रि “जनसत्ता या मजा सत्ता ्व्यावद्दारिक वस्तु हैं। इनसे रारीय फोई लाभ नददीं उठा सकते । शासन वी कला उनके लिये रची दी नहीं गई है । इसमें तो एक के चजाय धनेक मालिक वन जाति हैं-- क्सि फिस को खुश करके काम बना सकते हो ?” श्यादि झादि इस श्रकार उनका प्रयत्न यह होता है झि वे जनता के मन में जनतन्यात्मक शासन पद्धति श्रीर प्रतिनिधि सस्थाश्ा के अत्ति छणा शरीर 'मपिश्वास पैदा कर दें । स्वमावत सफलता से निराश शरीर विपक्षियों की कूद चालो से चिदे दुए हृदया पर ऐसे प्रचार का श्वसर होने लगता टै। साधारण मनुष्यों की तो थात दूर, इमने 'अनेर फार्यकर्ताओं पर ऐसी स्थितियों श्ीर थातों का मभाज दोते देसा दे । ीर यदद तो स्पप्र दी दे कि ऐसी थीज वो निर्वाध बढ़ने देना से फेयपल देश के साथ प्रस्युत जनतन्प के सिद्धान्त के प्रति भी पमिद्रोद करना है ! यदि इस घास्तय से जनतमवादी हैं 'औीर 'पने देश को उसके लिये तयार करना शाइते हैं, तो ऐसी यातों का सत्वाल श्रतिकार वरना दमारा कर्तव्य हैं । भोली झीर भावुक जनता स तो जमतंत्र चला सकती है, म जनतमात्मक ब्यवस्थाओं से लाभ उठा सकती दूं | यदद इमेशा किसी न किसी व्यक्ति था चर्ग से ठगी जाती रहेगी । छत जनतंत्र फा मार्ग परिप्कूत फरने का इसके सिवाय पोई “राज मारे” नदीं दै कि साघारण जनता को राजनीति के ब्याव दयारिक सियमा पी शिक्षा दी जाय । और यदद तय सर सर्दी दो सकता, जय तक कि चुनाव पद्धतियों के उेर्य, उनके सफल




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