राजपूतो का इतिहास जिल्द ३ , भाग २ | The History Of Rajputana Vol. 3, Part. 2

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The History Of Rajputana Vol. 3, Part. 2 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) श्रादि भी कम देखने में श्ाई हैं । उनकी युद्धवीरता की गाथधारं भी विशेष रूप से लोक-प्रसिद्ध नहीं दे, जिससे उनकी कौोर्त्ति देशव्यापी होती । बांसवाड़ा से 'झाई हुई दानपत्रों की नक़लें भी वहां क॒ इतिहास के संबंध में कोई विशेष बात प्रकट नहीं करतीं । घर्तमान राजवंश के चांदी के सिक्के तो स्वतंत्र रूप से चलते धी न थे । बद्दां से श्राये हुए कुछ शिला- लेखों छ्मौर दानपत्रों क॑ संबत्‌ भी विश्वास के योग्य नहीं हैं । राजकीय पत्र-व्यवहार, घद्दीखातों, पुरानी सनदों से इतिहास की घड़त कुछ कमी पूरी दो जाती है, परंतु बांसवाड़ा राज्य से पत्र-व्यवद्दार, बद्दी-खाते श्रादि मिल नहीं सके । संभवत: राज्य में उनका अस्तित्व नहीं है | राज्यों के दफ़्तर पदले मंत्रियों श्रादि के यहां रहते थे । जय राजा उनसे ब््रप्रसन्न हो जाता तो वे ( मंत्री श्रादि ) उपयोगी कागूज़-पत्रों को छिपा देते झथया उन्हें नए कर डालते थे । यद्दी कारण हैं कि राजपूताना के राज्यों में पेसी सामग्री कम प्राप्त होती है। फिर भी कुछ राज्यों में पेसी सामग्री घची छुई दे, परंतु यद्द घद्दां के शासकों की उस शोर अभिरुचि न दोने से नष्ट दोती जाती हे । पेसी परिस्थिति में बांसवाड़ा राज्य का स्चाद्-पूण इतिहास लिखा ज्ञाना बहुत कटिन है, तथापि जितनी सामग्री उपलब्ध थी श्र जो स्रोज से प्राप्त हुइ, उसके दाधार पर इस इतिद्ास का निर्माण हुश्ररा दे । जनश्नुतियां झौर ब्ड़व-भाटों की र्यातें उयो की त्यों रवीकार नहीं की जाती हैं, यों कि काल पाकर उनमं मनगढत बातें भी जोड़ दी जाती हैं । इसलिए पुष्ट प्रमाणों की भित्ति पर ज्ञो बात युक्तिसकत दो, उसी को श्रदण किया जाता हे । बांसवाड़ा राज्य का इतिद्दास लिखने में मैंने भी बेसा ही किया है | यह में ऊपर बतला चुका हूं कि बांसवाड़ा राज्य में प्राचीन पतिद्दास्िक घस्तुदों की खोज कम ही हुई है । संभव हे कि ख्रोज़ से भविष्य में झौर कुछ नूतन घातों पर प्रकाश पढ़े । उस समय इस इतिदास में भी परिधर्सन के स्थल उपस्थित दो सकते हैं; तो भी मुभे विश्वास है कि मेरा यइ इतिद्दास भाषी इतिदास-शेखकों को पथ-प्रदशंक का काम झवश्य देगा |




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