आर्थिक विकाश का केंद्रीय सिद्धांत | Kaynsian Theory Of Economic Development

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
6 MB
                  कुल पष्ठ :  
203
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्थापक एवं संस्थापकोत्तर पूर्वाधिकारी छ
क्षमता का परिचय देते हुए अपने शिप्य के लेख को प्रकाशित कर दिया, जिसमें वचत
की माँग के ज्लासमान पहलू, जिस पर केन्स स्वयं जोर देते थे, के विरुद्ध क्षमताकारक
पहलुओं पर जोर दिया गया था । हैरोड के विकास-सम्बन्धी आदर्श की ही तरह,
डोमर ने भी केन्स के गुणक सिद्धान्त (विनियोग की साँग अथवा आय-प्रभाव) एवं
उत्पादकता के संस्थापक सिद्धान्त (विभियोग के सिगमा-प्रभाव) के संश्लेपण का
प्रयास किया 1!
पूर्ति की दी हुई दशाओं में (विशेषत: पूंजी स्थायी स्टॉक के साथ), जब एक
बार उत्पादन का स्तर प्रभावकारी माँग के द्वारा निर्धारित होता है तो केन्स के
अल्पकालीन सिद्धाव्त की ही तरह दूसरा ताकिक प्रश्न यह होता है : यदिं पूँजी के
स्टॉक में वृद्धि से प्रति की दशाओं में परिवर्तन हो जाय तो उस निपज का कया
होगा ?  गत्यात्मक अर्थशास्त्र में इस प्रकार का प्रश्न होता है तथा उसका जवाव
भी दिया जाता है । ठीक इसी प्रकार श्रीमती जान रॉविन्सन ने प्रासंगिक ढँग से कहा
है कि यह इस विरोधाभास की व्याख्या करता है कि केन्स की 'जनरल थियरी' का
रूप स्थैतिक होते हुए भी इसने गत्यात्मक समस्याओं के विश्लेपण के लिए मार्ग
तैयार किया है ।* इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि श्रीमती रॉविन्सन” के साथ-
साथ नस्के* ने गत्यात्मक अर्थशास्त्र को अद्ध-विकसित अथे-व्यवस्थाओं की दिशा में
मोड़ दिया । दोनों ने ही विकासशील अर्थ-व्यवस्थाओं के लिए विनियोग-सम्वन्धी मांग
एवं पूँजी-निर्माण के कारणात्मक महत्त्व पर जोर दिया । अब भी यह निश्चित रूप से
नहीं कहा जा सकता कि पूंजी में अभिवृद्धि, जैसा कि संस्थापक अर्थशास्त्रियों का
विचार था, उपभोग में कमी के वगैर नहीं हो सकती अथवा जैसा कि केन्स ने कहां
है, उपभोग में साथ-साथ वृद्धि के बगैर असम्भव है, अथवा जैसा कि नसके” का विचार
है उपभोग में बिना किसी प्रकार के परिवतंन के थी सम्भव है ।
केन्स का राष्ट्रीय आय-सम्वन्धी विश्लेपण विकास-सम्बन्धी कार्यक्रम तैयार करने
का न्यूनतम आधार है । साथ ही यह बचत, उपभोग, विनियोग, रोजगार तथा परि-
1. देखें डोमर-का वहीं ।
9. द्रष्टव्य 'दि रेद ऑफ इंटरेस्ट एंड अदर एसेज' लंदन, 1982 के प्राककथन में ।
3. आर० नसकें, प्रोब्लेस्स ऑफ कंपिटल फारमेशन इन मंडरडेवलप्ड कौन्ट्रीस'
व्लेकबेल, ओक्सफोड, 1953 1
4. जें० रॉबिन्सन-का मार्चे, 1949 के इकानामिक जरनल में मि० होरोड्स डायना-
मिक्स” तथा दि रेट आफ इंटररेस्ट' इत्यादि ।.
5. नस्के के विचारों की विस्तारपुर्वेक व्याख्या सम्भाव्य वचत के रूप में छिपी हुई
बेरोजगारी के .सम्वत्ध में की जाएगी । नर केके. “संतुलित विकास' के सिद्धान्त के
व्यापक मुल्यांकन के लिए 11वां अध्याय देखें ।
 
					
 
					
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