मेरी जीवन गाथा भाग १ | meri Jeevan Gatha Vol 1 Ac 3988
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
639
श्रेणी :
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No Information available about गणेशप्रसाद जी वर्णी - Ganeshprasad Ji Varni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भे मेरी जीवनगाथां
न जाने कहाँ से पवित्रताका प्रवाह बहने लगता है । बनारसमें स्याद्ाद
विद्यालय और सागरमें श्री गणेश दि० जेन विद्यालय स्थापित कर आपने
जैन संस्कृतिके संरक्षण तथा पोषणके सबसे महददान् कार्य किये हैं । इतना
सब द्वोनेपर भी ब्याप अपनों प्रशंसासे दूर भागते हैं । अपनी प्रशंसा
सुनना आपको बिलकुल पसंद नहीं है । और यही कारण रहा कि आप
अपना जीवनचरित लिखनेके लिए. बार-बार प्रेरणा होनेपर भी उसे टालते
रहे । बे कहते रहे कि 'भाई ! कुन्दकुन्द, समन्तभद्र आदि लोककल्याण-
कारी उत्तमोत्तम महापुरुष हुए जिन्होंने श्रपना चरित कुछ भी नहीं
लिखा । में अपना जीवन क्या लिखेूँ ? उसमें है ही क्या ।'
अभी पिछले वर्षोमें पूज्य श्री जब तीथराज सम्मेदशिखरसे पैदल
भ्रमण करते हुए; सागर पधघारे और सागरकी समाजने उनके स्वागत
समारोइका उत्सव किया तब वितरण करनेके लिए. मैंने जीवनभॉँकी
नामकी १६ प्रष्ठात्मक एक पुस्तिका लिखी थी । उत्सवके बाद पूज्य वर्णीं
जीने जब वह पुस्तिका देखी तब हँसते हुए बोले “अरे ! इसमें यह क्या
लिख दिया ! मेरा जन्म तो हेसेरामें हुआ था तुमने छहरीमें लिखा है
और मेरा जन्मसंवत् १६३१ है पर तुमने १६३० लिखा है। बाकी सब
स्तुतिवाद है । इसमें जीवनकी भाँकी है ही कहाँ ?” मैंने कहा, “जाचानी !
आप अपना जीवनचरित स्वयं लिखते नदीं हैं और न कभी किसीको
क्रमबद्ध घटनाश्रोकि नोट्स हो कराते हैं । इसीसे ऐसी गलतियाँ दो जाती
हैं। में क्या करूँ ? लोगोंके मुंहसे मैंने जेसा सुना वैसा लिख दिया |?
सुनकर वह हँस गये और बोले कि अच्छा अत्र नोट्स करा देवेंगे |
मु प्रसन्नता हुई । परन्तु नोट्स लिखानेका अवसर नहीं आया । दूसरी
वर्ष लंबलपुरमें आपका चातुर्मास हुआ । वहाँ श्री घ्र० कस्तृरचन्द्र जी
नायक, उनकी घमपत्नी तथा ब्र० सुमेंरुचन्द्रजी जगाघरी आदिने जीवन-
चरित्र लिख देनेकी आपसे प्रेरणा की । नायकन बाईने तो यहाँ तक कहा
कि मद्दाराज ! जबतक आप लिखना शु& न कर देंगे तबतक मैं भोजन
न करू गी । फलतः अवकाश पाकर उन्होंने स्वयं ही लिखना शुरू किया
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