विवेकानन्द साहित्य जन्मशती संस्करण खंड १० | Vivekananda Sahitya Janmshati Sanskaran Khand-10

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Book Image : विवेकानन्द साहित्य जन्मशती संस्करण  खंड १०   - Vivekananda Sahitya Janmshati Sanskaran Khand-10

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिवेकानत्य साहित्य रन ऐसी हो बातें थो सिद्ास्तत बड़ी बच्छी हैं पर जिन्हें चरितार्थ करता आाग्पक था । उसौका थीड़ा इम्होंनि चठाया। तब बहु यू ख का दिन आापा शव हमारे वृद्ध गुश्देव ने महासमाधि की | हमसे जितना बता हमने तमकी सेबा-सुभूपा की । हमारे कीई मित्र म थे। पुनता सौ कौन, हम ऊुछ विभिष सौ विचारधारा के छोकरों की बात ? कोई तही। कम से कम मारत मे तो छोकरों की कोई बक्षत सही । जरा सोचो--बारह सड़के सोपों को दिशा महामू सिंद्धास्त सुनायपें भर कहें कि बे इन बिज्ञारों को जौधन में गबरितार्थ करने के सिए कससंकस्प हैं! हाँ सभी है हँती की हुए करते करते थे शम्मौर हो गये--इमारे पौछे पड़ गमे--सत्पौज़त करते छते। बालकों के साता- पिता इमे कोष से विक्कारते छपे और ज्यो ए्पों शोगों ने हमारी खिस्छी सड़ायी रयों त्यो इम खौर मी बृड होते पे! ठब इसके बाद एक भमकर समय माया मेरे करिए शौर मेरे अस्प भाकूक मिर्जो के लिए मौ। मर मुझ पर तो शौर मौ मौषण बुर्माग्प छा गया था ! एक सौर थे सेरौ माता शौर अआातापण। मेरे पिता थी का श्षसात हो बया शौर हम छोग शसह्ाप विर्षन रह मे इतने निर्षन कि हमेशा फाक्ाकशी कौ सौबत ला शयी | छुदुम्ब की एकमाण आशा मैं था जो थोड़ा कमाकर छुक्त सहायता पहुँचा सकता । मैं दो बुनियार्थों को सच्धि पर खा था। एक खोर था मेरौ माता शौर साईइरपों के भूखों मरने का दुष्म और दूसरी आर थे इन सह्दानु पुरुष के विचार, लित6ै--मेरा श्वपाछ था--मारत का हो नहीं सारे बिषुव का कश्पाल हो सकता है जौर इसलिए शितका प्रचार करता जिन्हे कार्यात्चित करमा विषय था। इस तरह मेरे मत में महीनों यह संबर्प बदलता रहा! करनी तो मैं के का सात सात दिल गौर त लिरल्तर प्रार्थना करता रइता ! कैसी बेदता थी बह! माती मैं चौषित हो सरक हूँ था। कुटूम्ब के तैसाणिक बत्बत जौर मोह मुझे अपनी बोर छीच रहे थे--मेरा बाश्प हृदय भक्ता कैसे खपने इतने घरों का दर्द देखते रहता? फिर दूसरों थोर कोई सहावुमूति करनेदाला सौ गही चा! अकूक टी कश्पनार्लों से सहानुमूति करता पी कौस ऐसी कश्पताएँ लितसे औरों को तकशौफ ही होती ? मुझसे मछा किसको सहागुमूति होती 7--किसौकी तही--सिधा एक के। चस पक की सहानुमुति ते मूझे आशौध दिया मसुझमे आाथ्या चगायी। बहु रनी थ। हमारे पुब्देव--जे भहाएंस्यासी--बास्यावस्था में हो जिषाहित हो पे थे । सुदा होगे पर अब चतकी धर्मप्रब्ता अपनी अरम सौमा पर थी थे थाये एक विन अपनी पत्नी को देशते। बार्मावस्था मे जिवाह हो थाने के उपरात्त युवाजस्था तक लस्टे परस्पर मैछ-मिछाप करते का लगसर क्‍्वचित्‌ हो सिखा था। पर जग थे बड़े




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