शकुन्तला उपाख्यान | Shakuntla Upakhyan

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Shakuntla Upakhyan by कालिदास - Kalidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अकुन्तना । पं | डराय है । अति जो अभोत महाराज यो दुष्बन्त ताके राज | | में रिघिन कौन सकत सताय है ॥ दो । सों ताकि तत्र पूछो यक् मचिपाल | कच्डो तिद्ारे कुशल है छोटे ट्रम खगबाल ॥ कम्प्र बढ़गो तन कंटकित सुख तें कढ़त न बेन । ं लकि सो री शडुन्तला निरघि भरि सेन ४० चौपाई । शकुन्तला को बालि न आयो ॥ अनसूया यक्ष सुनायों ॥ क्यों न छोय अब कुशल मारो । तुम से साधु करत रखवारों ॥ प्यादं बस करि झां अये। व्यूसजलकन अनन मे छायें ॥ शोतन छांद सघन तरु डारें । बेठो इत इम पाय पखारें ॥ शखे भाग्य तें चरन तिह्दारे । आज़ु दिवस तुम अतिथि सारे ॥ शकुन्तला क्यों से अयानो । ल्याउ पियन को शोतल पानो ॥ तब चप बेन मैंन-रससाने । टेखत हों इस तुम्हें अघाने ॥




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