स्वतन्त्रता की पुकार | Swatantrata Ki Pukar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भी भूल गये । 'घम कम सब सत्यानाश हा गया; कला
कौशल का तो ठिंच्हाना ही क्या, इसका जी तो इतना घब-
ड्राया कि इसने अपना सापाज्य सात समुद्र पार जो
जसाया । नई सभ्यता ने अपना आतंक ऐसा जमाया कि
पुरानी सभ्यता का दिवाला निकल गया । कहने का तात्पयं
यह कि, इस मेाहनी मंत्र ने ऐसी सफाई के साथ असर डाला
कि हृदय में झचुसव करने के सिवा कहते नहीं बनता, साग्य-
हीन सारतवासियों मे अज्ञानवश कणिक खुख के लोभ में
प्रडकर अपने तन, सन झतैर धन को नाश कर दिया और
ऐसे मतवाले इये कि अपनी जगह के त्याग कर पीछे
खिसक पड़े तथा अपनी मान-मणादा को भ्रष्ट करते हुये
पराधीनता के पिंजरे में पूर्णतया फंस कर अली सांति पर-
तल्त्र बन बैठे ।
सच कहा हे--
पराधघीन सपने सख नाहीं ।
चास्तव में, यही वाक्य चरितार्थ डुडा । उधर चिदेशियों
ने भो अपनी प्यास ,खूब बुभाई । भोले भाले भारतवासियों
का सिर से पैर तक झपने ही सा बना लिया श्र अपने
अन्यायपूर्ण झधिकारों द्वारा भारतीय जनता के कोमल हृदय
का विह्नल कर डाला तथा विध्वंशकारी कानूनों द्वारा कठिन
चेदना देकर शपने अघम और अन्याय का परिचय सारे
संसार को दे दिया, ले किन, अन्याय की हस्ती ही कया ? समय
ने पट्टा खाया । हिन्डुम्तासियों की श्ांखे खुल पड़ी । विदेशियों
के दिये हुये अन्याय छुखों का सार झसहथय हो गया ।
न्य्क्र
फिर कया था; पोछ खुल पड़ी, सारे देश में खलबली मच
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