श्रीमदभागवतमहापुराण | Shrimadabhagavatamahapuran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दी ध्म्म्ल्ना पदच्छेंद--- शब्दार्थ--- तु अहम ते अभिधास्पामि महापौरुधिक: भवान्‌ । यस्प 9. श्र डे ४. ७ प्‌ १ श्रीमद्भागवत | अ० १ दाम: श्लोक: तदहूँं तेडभिधास्यामि महापौरुषिकों भवान्‌ । यस्य श्रद्दधतामाशु स्यान्मुकुन्दे मतिः सती ॥१०॥ तद्‌ अहम्‌ ते अभिधास्यामि, महापौरुधिक: भवान्‌ । यस्य धट््धताम्‌ आशु, स्यात्‌ मुकुन्दे मति. सती ॥ बह (कथा) श्रहूघतामू ८. श्रद्धा रखने वाले (प्राणियों) की ्षै आशु १२. तत्काल आपको स्थात्‌ १२. लग जाती है सुनाऊँगा भुकुन्दे. ११. भगवान्‌ श्रीकृष्ण में परम भक्त (हैं अतः) मत्ति: १०. बुद्धि आप सतो।।..... ४. सत्तम जिस पर शलोकार्थ- आप परम भक्त हैं; अतः मैं आपको वह कथा सुनाऊंगा, जिस पर श्रद्धा रखने वाले प्राणियों की उत्तम बुद्धि भगवान्‌ श्रीकृष्ण में तत्काल लग जाती है । एकादश: श्लोक: एतल्िविद्यमानानासिच्छतासकुतो भयमू .. । योगिनां. नप निर्णीत हरेनमिनुकीतंनमस्‌ ॥११॥। पदच्छेद--- एतद्‌ निरविद्यमानानाम्‌, इच्छताम अकुतोभयम्‌ । योगिनाभ्‌ नुप निर्णीतम्‌, हरे: नाम असुकीर्तनस्‌ ॥ शब्दाथ॑-- एतवूं २. सांसारिक विषयों से न्‌प पे. हे राजन्‌ ! निविस्मानानाम्‌ ३. विरक्त (तथा) निर्णोतम्‌ १०. निश्चित किया गया हैं इच्छताम्‌ ५. इच्छुक हरेः ७. श्रीहरि के अकुतोभयम्‌ ।. ४. अभयपद के नास ८. नाम का योशिनाम ६. योगियों के लिए अनुकीतेनसू ॥.. ४... कीतेंन शलोकाथ--हे राजन्‌ ! सांसारिक विषयों से विरक्त तथा अभयपद के इच्छुक योगियों के लिए श्रीहरि के नाम का कीर्तन निश्चित किया गया है ।




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