सोलहकारन धर्म | Solahakaran Dharm
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सोल्हकारनंधंम । [.९,
बन्घ-योग-और कंपायोंके निमित्तते जीव और प्द्धल कर्म
परमंणुर्वोका एक क्षेत्रावगाह्द रूप '. सम्बन्ध होना-आश्रवके मेदसे
यह भी. शुमाशुम दो: भेदरूम होता है. ।
“..':/. _सुवर-आते ' हुवे कर्मपरमाणुर्दाकों योग निरोध करके
आनेसे 'रोकनां । कि
निजेरा-एृव-काठके बंधे हु कर्मपरमाणुर्वोका क्रमन्रमसे
“तंपश्वरणादिके निर्मित्तसे छुड़ाना.।
मोझ---वंधें हुवे: सेम्पूंग कर्मेका जीवसे सवेधा' सम्बन्ध
छूट जानें । डक
इस “प्रकार .'संशेपसे- तंत्वोका स्वरूप कंह कर अब' देव; 'घ्म
ओर गुरूका, संरूप कहते है--
< 2... ५ .. सत्याथ . देवका, स्वरूप ।
./... “अधिनेतलिनदोपण सवेज्ञेनागेशिना
..*/:..'भवितव्यं.. नियोगेन, नान्यथा दाता भंदेत_॥५,॥
. : ...' कंप्तिपासाजरातडुर्नेन्मान्तकंभवस्मयाः
7. नरागद्वेषमोहोथयस्याहं: . सं .प्रकीलते ॥
बन +- ' * “(.रत़कंरडश्रावकाचार 'अ० हई )
: . ८. अधे-तियमसें जो वीतसगं,'अर्थात,झुवा, तप, बुंदा, रोगें
जन्मे, मरी, - मै, “वे, राग दल; सोहैं'; चितौ, रति 5; .अरति 7; .
सेदे *, खेदे नि, और जा, इल्यांदि -दोपोसि रहित; संबं्त
अर्थात् अछोक .: सहित: ' तीनों छोकके समत्त पदाधाको , उनकी.
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