सोलहकारन धर्म | Solahakaran Dharm

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Solahakaran Dharm by पण्डित दीपचन्द्र - Pandit Dipachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सोल्हकारनंधंम । [.९, बन्घ-योग-और कंपायोंके निमित्तते जीव और प्द्धल कर्म परमंणुर्वोका एक क्षेत्रावगाह्द रूप '. सम्बन्ध होना-आश्रवके मेदसे यह भी. शुमाशुम दो: भेदरूम होता है. । “..':/. _सुवर-आते ' हुवे कर्मपरमाणुर्दाकों योग निरोध करके आनेसे 'रोकनां । कि निजेरा-एृव-काठके बंधे हु कर्मपरमाणुर्वोका क्रमन्रमसे “तंपश्वरणादिके निर्मित्तसे छुड़ाना.। मोझ---वंधें हुवे: सेम्पूंग कर्मेका जीवसे सवेधा' सम्बन्ध छूट जानें । डक इस “प्रकार .'संशेपसे- तंत्वोका स्वरूप कंह कर अब' देव; 'घ्म ओर गुरूका, संरूप कहते है-- < 2... ५ .. सत्याथ . देवका, स्वरूप । ./... “अधिनेतलिनदोपण सवेज्ञेनागेशिना ..*/:..'भवितव्यं.. नियोगेन, नान्यथा दाता भंदेत_॥५,॥ . : ...' कंप्तिपासाजरातडुर्नेन्मान्तकंभवस्मयाः 7. नरागद्वेषमोहोथयस्याहं: . सं .प्रकीलते ॥ बन +- ' * “(.रत़कंरडश्रावकाचार 'अ० हई ) : . ८. अधे-तियमसें जो वीतसगं,'अर्थात,झुवा, तप, बुंदा, रोगें जन्मे, मरी, - मै, “वे, राग दल; सोहैं'; चितौ, रति 5; .अरति 7; . सेदे *, खेदे नि, और जा, इल्यांदि -दोपोसि रहित; संबं्त अर्थात्‌ अछोक .: सहित: ' तीनों छोकके समत्त पदाधाको , उनकी.




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