निशीथ एवं अन्य कविताएं | Nisheeth Evam Anya Kavitayen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तीसरा एक तंतु मृत्यु-विषयक संवेदन का है : 'एक बच्ची को श्मशान ले जाते
हुए के बाद 'पिताके फूल तथा 'स्वीय बड़े भाई' कतियाँ मिलती हैं।
चौथा तंतु जीवन को वास्तविकताओं का है, जिनमें केवल विपमताओं के ही
नहीं, किन्तु जगत-जीवन के विशाल फलक पर की, दृष्टि की व्याप्ति से बाहर रह
गई, निपट वस्तुस्थितियों के कुछ अंश अनुभूति-विषय बनते है ।
पाँचवा त॑तु--बल्कि उसे पाँचवाँ न कहें; यहाँ उपर्युक्त चारों तंतु समवेत हो
कर अनुभूति का रूप लेकर स्फुट होना चाहते हों ऐसा लगता है । मेरे लिए तो यह
जीवन का, कमसे कम कवि-जीवन का शायद मुख्य भाग बनता रहा है । यह दिखाई
देता है 'आत्मा के खण्डहर' में । विश्वशांति के स्थान पर यहाँ व्यक्ति की अशांति
शायद विषय-वस्तु बनती है बुलंद अभीप्सा जीए जाते विविधरंगी जीवन के
स्पर्श से पहलदार बनती है। और यथाथ --निरा यथाथे, केवल यथार्थ के स्वागत
में परिणत होती है । विश्वशांति और वेयक्तिक अशांति विरोधी वस्तुएँ नहीं रह
जातीं । दोनों यथार्थ के सेतु से जुड़ जाती है । सॉनेटमाला के अंतभाग में एक प्रकार
के सशयवाद, निराशावाद, जन्यवाद (7रा001501), स्वप्न-आदर्श-भविना विपयक
पराजयवाद (0८८४5) और भागे चलकर हमें पाश्चात्य साहित्य द्वारा दिखाये
गये निःसारवाद (110 &05णत), अस्तित्ववाद (छा पघ2119) ) के इंगित हैं,
किन्तु परिणाम स्वरूप उबर आती है एक प्रकार की कोई आध्यात्मिक अनुभूति ।
व्यक्ति दबता, झेलता,मंज कर बाहर आता है यथाथ॑ का स्वागत करते, उसे
अपनात हुए । मुक्त हृदय से, मुक्त चित्त से ययार्थ का निःशेष स्वीकार भी स्वत:
एक आध्यात्मिक विजय को भूमिका है ।
'अभिज्ञा (१६६७) में संग्रहीत 'छिन्नभिन्न हूँ' और “शोघ' कतियाँ आगे बढ़
कर एक पूरा काव्यस्तबक बनें ऐसी परिकल्पना है। इस काव्य-संपुट में बे चारों
समवेत तंतु पुन: किस प्रकार प्रत्यक्ष होंगे यह फ़िलहाल मैं हो न जानता होऊँ तो
केसे कह सक् ? अपने ढँग से वह अलग और अनूठा प्रयत्न होना चाहेगा । मुझे कुछ
ऐसा लगता है कि सर्जक चेतना कभी कभी गोल सीढ़ी पर चढ़ती (5छ10811/08) भी
देखने को मिलती है ।
कहिए कि “आत्मा के खण्डहर' में जो बाहर देखने को मिला था उसका
साक्षात्कार 'छिन्नभिन्न हूँ में भीतर होता है । 'आत्मा के खण्डहर' सॉनिट के द्ढ
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