गल्प - रत्नावली | Galp Ratnawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
625 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शा
शतरंज के खिलाड़ी श३
था; पर यहाँ तो लोग विलासिता के नशे में चूर थे; किसी
के कानों पर जूँ न रेंगती थी ।
खैर, मीर साहव के दीवानखाने में शतरंज होते कई
महीने गुजर गये । नये-नये नक्शे हल किये जाते,
नये-नये क्विले बनाये जाते, नित्य. नई व्यूद-रचना
होती, कभी-कभी खेलते-खेलते भौ़ हो जाती, तूततू
मैंें तक की नौवत आ जाती; पर शीघ्र ही दोनों
मित्रों में मेल हो जाता। कभी-कभी ऐसा भी होता,
कि बाजी उठा दी जाती, मिरजा जी रूठ कर अपने घर
चले आते । मीरसाहव अपने घर में जा बैठते; पर
रात-भर की निद्रा के साथ सारा नाम शान्त हो
जाता था ।. प्रातःकाल दोनों मित्र दीवानखाने में
झा पहुँचते थे ।
कक दिन दोनों मित्र वैठे हुए शतरंज के दल-दल में
' गोते खा रहे थे कि इतने में घोड़े पर सवार एक वादशाही
फ़ौज का अफसर मीर साहब का नाम पूछता हुआ आ
पहुँचा । मीर साहब के होश उड़ गये ! यह क्या बला सिर
पर आइ ! यह तलबी किस लिए हुई है ! अब खैरियत
नहीं नज़र आती ! घर के दरवाजे बन्द कर लिये । नौकरों
से बोले--कद्द दो, घर में नहीं हैं ।
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