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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रिय नमंदा प्रसाद जी, प्रापका १-१-६४५ का का मिला । धन्यवाद । मुभे स्वयं इसका दुख है कि परिस्थितियों की विवदता के कारण मैं श्रापके ्राग्रह की रक्षा नहीं कर सका । आप मुभऋे जबलपुर में ही बसा लीजिये, फिर श्राप देखेंगे कि मैं जबलपुर के बाहर कहीं नहीं जाऊँगा । चूँकि भाग्य ने प्रयाग में बसा दिया है ग्रब यहाँ से बाहर निकलना संभव नहीं हो रहा है । के के # के ७ च से के के के के क के के के से के के ॥# न + के » के के ४ के के भ्रपनी हार्दिक झुभकामनाएँ इस अवसर पर भेज रहा हूं 1 आज के युग में हमें राष्ट्र भाष। ही नहीं बनानी है, राष्ट्रीय स्वरूप को भी संगठित करना है । हमारा दृष्टिकोण वैयक्तिक, सामाजिक जीवन के प्रति मध्ययुगीन ही रह गया है । हम मत महांतरों में ख्रोये हुए भ्राज के युग की समस्याशं के प्रति बिल्कुल ही प्रबुद्ध नहीं हो पाये हैं । हिन्दी को हमें भाषा से भी अधिक राष्ट्रचंतना के रूप में ढालना है । उसके द्वारा श्रधिकारों को वाणी देनी है जो राष्ट्रीय एकता का पोषण करें, साथ ही जो हमारी उवंर घरती के प्राणों में नयी शक्ति, नये संगठन, नयी प्रेरणा का संचार करें । हिन्दी भविष्य के विदव जीवन की दपंरा बन सके | १८ के. जी. मागे, इलाहाबाद आपका परे .. सुमित्रानदन पंत ष् प्रिय महोदय, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के श्रधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए श्रापका श्रामंत्रण मिला । एतदथ धस्यवाद । मैं ग्रन्य कार्यों में व्यस्त रहने के कारण श्धिश्दन में उपस्थि होने के लिए दा रू । प्रघिवेशन की मैं हादिक सफलता चाहता हुं । चौपाटी रोड, बम्बई-४७ भवदीय शान दर कृू० ज० मुन्शी




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