फुलवाडी | Phulbari

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Phulbari by मोहनलाल - Mohanlalरवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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मोहनलाल - Mohanlal

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फुलवाड़ी पानी ।. तृषितजन पोकर कहते: “कैसा मीठा पानी है !--उत्तर में सुन पाते : हमारे ही बागीचे के नारियल का पानी है' ।--इसपर सभी कहते : “ओहो, तभी तो हम कह रहे थे कि आखिर क्यों इतना मीठा है !' आज इस भोरवेला में पेड़ों-तले दाजिलिग-चाय की वाष्प के साथ बसी हुई नाना ऋतुओं की गंघ-स्मति दीघेनिश्वास से मिलकर नीरजा के मन में हाय-हाय करती है। खुनहले रंगों से रंगीन अपने उन्हीं दिनों को घह जाने-किख दस्यु के हाथ से छीनकर चापस लौटा लाना चाहतों है । चिद्रोही मन क्यों किसोको अपने सामने नहीं पाता ? भलेमाजुसों की तरह सिर भऋकाकर भाग्य को स्वोकार कर लेनेवाली लड़की तो वह है नहीं । फिर इसके लिये ज़िम्मेदार कोन है? कस घिश्चव्यापी बच्चे का यह लड़कपन है ! किस विराट् पागल थी यह छृति है ! ऐसी परिपूण सष्टि में इस तरह निरथक भाव से उलट-पलट किया तो किसने ! चिवाह के बाद उनके जीवन के दस पं लगात्यर अधिमिश्र सुख में बीते थे। मन-हो-मन इसे लेकर सखियों ने उससे ईपष्यां की थी ; सोचा था, नीरजा ने पथ




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