सुन्दरसार | Sundarasaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८९ ) शिरोमाणि गति तुर्यित्तीत जानी की है । इस प्रकार पेंच प्रभाव इ इनमें शानी सर्वोत्तप है । वह माया के शुर्णो ले उलिप्त ओर अल रदता है 13 ते देह माण कौ धर्म यद शीत दप्ण छुस् प्यास |... । ज्ञानी सदा भडिप ऐ उ्यों भलिपत भाकास ॥२९| (९ ) युरूसंप्रदाय अ्रंथ । [ इस अप में प्रतिलोम रीति से अर्यात्‌ स्वय अपने समाप 7 लगाकर सुदरदाष जी ने अपने आदि शुरू इंश्वर सक शुरुपरपर देकर अपनी प्र्षशप्रदाय का, किसी , के प्रदन के उत्तर में परिचर दिया है। यद्द प्रणाली अन्य फिसी सी स्थष में सदी मिलती | ध इस को दोहा चौपाई में वणने किया दे जिनकी संख्या ५३ है । प्रार में स्वामी जी ने चोदा नगरी में दादू जी के आानि पर उन सैर उपदेश अरदण कर शिप्यत्व को पाया सो मी ल्खा है । 3 प्रथमर्दि कद अपनी चाता । मोदि मिछायों प्रेरि विघाता 1 दादूजी जब थौसद आये । घाठउपनें हम दरसन पाये ॥ ४ ॥ तिनके घरननि नायौ माथा । चनि दीयो मेरे सिर द्दाथा । ऊ# जपगोपालकृत 'दादू जन्म छीव्तः परिचय, 'वतुरदास कृत थम पद्धति', राघवदासफत 'सक्तमा' ( जिसमें दादूजी की दाासस्प्रद को भी विदेष ब्योरा दे ), दीरादासझत 'दादूरामोदय” ( सस्कत झय ) इस्यादि में यह नामायका कुछ मी नहीं दे।




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