सुन्दरसार | Sundarasaar
श्रेणी : शिक्षा / Education, हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(८९ )
शिरोमाणि गति तुर्यित्तीत जानी की है । इस प्रकार पेंच प्रभाव इ
इनमें शानी सर्वोत्तप है । वह माया के शुर्णो ले उलिप्त ओर अल
रदता है 13 ते
देह माण कौ धर्म यद शीत दप्ण छुस् प्यास |... ।
ज्ञानी सदा भडिप ऐ उ्यों भलिपत भाकास ॥२९|
(९ ) युरूसंप्रदाय अ्रंथ ।
[ इस अप में प्रतिलोम रीति से अर्यात् स्वय अपने समाप 7
लगाकर सुदरदाष जी ने अपने आदि शुरू इंश्वर सक शुरुपरपर
देकर अपनी प्र्षशप्रदाय का, किसी , के प्रदन के उत्तर में परिचर
दिया है। यद्द प्रणाली अन्य फिसी सी स्थष में सदी मिलती | ध इस
को दोहा चौपाई में वणने किया दे जिनकी संख्या ५३ है । प्रार
में स्वामी जी ने चोदा नगरी में दादू जी के आानि पर उन सैर
उपदेश अरदण कर शिप्यत्व को पाया सो मी ल्खा है । 3
प्रथमर्दि कद अपनी चाता ।
मोदि मिछायों प्रेरि विघाता 1
दादूजी जब थौसद आये ।
घाठउपनें हम दरसन पाये ॥ ४ ॥
तिनके घरननि नायौ माथा ।
चनि दीयो मेरे सिर द्दाथा ।
ऊ# जपगोपालकृत 'दादू जन्म छीव्तः परिचय, 'वतुरदास कृत थम
पद्धति', राघवदासफत 'सक्तमा' ( जिसमें दादूजी की दाासस्प्रद
को भी विदेष ब्योरा दे ), दीरादासझत 'दादूरामोदय” ( सस्कत
झय ) इस्यादि में यह नामायका कुछ मी नहीं दे।
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