खुराक की कमी और खेती | Khurak Ki Kami Aur Kheti

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Khurak Ki Kami Aur Kheti by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डर सच्चा युद्ध प्रयत्न आज सबसे ज़रूरी सवाल जो हमारे सामने खड़ा है, वह भूखसे पीड़ित लोगोंकि लिगे रोटीका और वल्नद्दीन गरीव जनताके लिअ कपड़ेका वन्दोवत्त करनेका दै । जिन दोनों चीज़ॉंका . देवमें दुब्काल है और अगर लड़ाओी लम्बी चली; तो यह संकट और भी बढ़ जायगा । बादरसे अन्न-वल्लका आना बन्द हो गया है । धर्निक वर्ग भठे आज जिसकी तंगीको मदददस न करता हो; परन्त गरीब छोग तो आज भी काफी तंगीमें हैं । धघनिक वर्ग गरीवोंकि शोपणसे दी आज अपने आपको जिन्दा रख रहा है । जिसके सिवाय और कोओी रास्ता झुसके पास नहीं है । तो गरीबेकि प्रति आज जिस वर्गेका कया धर्म है? कहावत है कि जो जितना बचाता है, वह सझुतना ही कमाता या पैदा करता है । जिसलिभे जिनको गरीवों पर दया है, जो शुनके साथ मैक्य साधना चाहते हैं, अुन्हें अपनी आवश्यकताओं कम करनी चाहिये । यह हम कभी तरीकोंसे कर सकते हैं | मैं अुनमेंसे कुछ ही का यहाँ ज़िक्र करूँगा ! धमिक वर्गमें प्रमाण या आवश्यकतासे कहीं ज्यादा खाना खाया और ज़ाया किया जाता है । ेक समय ओेक ही अनाज जिस्तेमाछ करना चाहिये । चपाती, दाल-भात, दूध-घी, गुढ़ और तेल ये खाद्य पदार्थ शाक-तरकारी और फलके अुपरान्त आम तीर पर हमारे परोंमें जिस्तेमाल कित्रे जाते हैं । आरोग्यकी इृष्टिसि यह मे ठीक नहीं है ! जिन छोगोंको दूध, पनीर; जंडे या माँसके रूपमें श्नायुवधक तत्व मिल जाते हैं, सुनें दालकी बिलकुल ज़रूरत नहीं रहती । गरीब लोगोंको ३




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