नीड़ की ओर | Need Kee Aur

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Need Kee Aur by मदन गुप्ता सपाटू - Madan Gupta Spatu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अगले दिन सुबह मैंने नोट किया उसकी उड़ाने सधी हुई नहीं थी 7 वह बार-बार खिड़की की प्रिल से टकरा रहा था । निशाना चूक-चूक जाता 1 लड़खड़ा कर इधर-उधर टकरा रहा था । कुछ देर बाद शीशे पर लगे पेच पर पंजे गड़ा कर स्वयं को संतुलित करने के प्रयास में बार-धार वेसिन में गिर पड़ता । चुज़ों के डैने निकल श्राये थे । वे भी फुरं फुर्रा कर उडारियाँ मारने लगे । चिड़िया उन्हें उड़ने में सहायता करने लगी । चौंच से उनकी गदंत पकड़ती झौर घोंसलें में ठूंस देती । पर बच्चे थे कि बाहर से श्रन्दर ही नहीं श्राना चाहते थे । चिड़िया को झाम की दूठ पर बैठते कब्वों का भी डर था । न ज़ाने कब वे उनका ग्रास बन जायें चिड़ा इस परवरिश से उदासीन था 1 पर शुचि उसकी पंखे से शीशे तक की लोकल यात्रा से परेशान थी भर तीन बच्चों की श्रतिरिवत बीट की सफाई कर-कर के झुझला पड़ती थी इतवार को चिड़ा राम कपड़े टांगने वाली तार पर बैठे रहे अंधेरा होने तक उसी पर भूलते रहें । घोंसले की श्रोर टकटकी लगाए रहे। कहीं से चिड़िया भी लौट श्राई शौर तार पर उसकी बगल में बैठ गयी । तार के साथ-साथ दोनों भूलते रहे । आम के पेड़ पर चिड़ियों के अन्य झुड भी चीं- कर रहे थे पर इस दम्पति का स्थायी निवास हमारे बैड रूम में ही था । इससे पहले भी घोंसले में दुबक जाने से पूर्व दोनों मियां बीबी त्तार पर भुला भूलते दिनचर्या पर चर्चा करते बाकी चिंड़ियों से विचारों का झादान-प्रदान करते श्रौर श्रंघेरा गहुराने पर श्रा जाते । उस शाम चिड़िया जल्दी ही घोंसले में झा गई भर बच्चों को सहलाने लगी 1 मगर चिड़ा काफी देर तार पर श्रकेला भूलता रहा अधिक रात ।. गए बिल्ली के डर से बरामदे में मनी प्लांट के गमले के पीछे बैठ गया । शुचि उस सांय श्रपने किसी क्लीग के गई हुई थी । । चिड़िया पंखे पर बैठी चिड़े के आने. की प्रतीक्षा करती । मैं भी शुचि के नीड़ की ओर / 7




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