जिनवाणी | Jinavani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jinavani  by हरिसत्य भट्टाचार्य - Harisatya Bhattacharya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरिसत्य भट्टाचार्य - Harisatya Bhattacharya

Add Infomation AboutHarisatya Bhattacharya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्दे कारण भी जो ' जैन ” पत्रको पढते है इन्हे यह बतछानेकी आवश्यकता नं है कि भाई सुशीलेकी गुजराती भाषा एवं लेखनदैठी साधारण और अपक्द नहीं है । बंगला और गुजराती भाषाका अच्छासा परिचय रखनेवाले और लेखनदाक्ति-सम्पन अनेक भाई और कुछ बढिंने भी सयाज शुजरातमें विधमान हैं, तथापि उनमेंसे किसीने भी इन लेखोंका अनुवाद किया होता तो वह इतना सफल होता, या नहीं, इसमें मुझे बहुत सन्देह है । क्यों कि, ऐसे ढेखकॉमेंसे किंसीको भी लिन शाल्नीय ज्ञानका, भाई सुशीछके समान स्पष्ट और पक्व परिचय हो ऐसा मैं नहीं जानता । यही कारण है कि, भाई सुशीछ अपने अनुवाद-कार्यमें खूब सफछ हुएं है । इनका अनुवाद ठेखोंका चुनाव भी जेन दर्रनके विशिष्ट अम्यासियोंकि दृष्टिकोणसे समुचित है। क्यों कि, बहुत अधिक अध्ययन और चिंतनके पश्चात्‌ परिश्रमपूर्वक, नवीन रैछीऐे, एक जैनेतर बंगाली सजनकी ठेखिंनीसे लिखे हुवे ये लेख जिस प्रकार नव जिज्ञासु गुजराती जगतके लिये प्रेरणा देनेवाले है, जिस प्रकार ये लेख गुजराती अनुवाद-साहित्यमें एक विशिष्ट बुद्धि करते हैं एवं दाशेनिक चिंतन-कषेत्रें उचित परिवरद्धन करनेवाले हैं, उसी प्रकार ये, मात्र उपाश्रयसंतुष्ट एवं सुविधानिमगन जैन त्यागीवरगको विशाल दृष्टि प्रदान करनेवाढे एवं उनके अपने ही विस्तृत कतैब्यकी याद दिछानेवाले है। प्रस्तुत लेखोंके मूठ लेखक श्रीयुत्‌ हरिसित्य भट्टाचार्यजीसे बहुते वर्ष पहिंठे, ओरीएन्टल कोन्फरन्सके प्रथम अधिवेशनके अवसर पर पूर्नोमें भेट हुई थी । उस समय ही उनके परिचयसे मेरे ऊपर यह छाप पढ़ी थी कि, एक वंगाछी और वह भी लैनेतर सजन होते हुए भी वे जैन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now