अगिन देवी | Agnie Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अगिन देवी 13 एक ही गांव के भी तो नहीं हैं । दो जातियों में कई शादियां तो भिखारी भी जानता है । खुद जमुना सिंह के वाप का कहीं व्याह नहीं हो रहा था तो ढलती उमिर में सोनपुर मेले से एक औरत खरीद लाए थे । अगल- बगल कानाफूसी जरूर हुई थी । जमुना सिंह के वाप ने ब्राह्मण बुलाकर व्याहू कर लिया । यही जगपत पांडे ललकार-ललकार कर कहते चलते थे-- . क्या सबूत है कि वावू साहब की मेहरारू परजात औरत है ? धीरे-धीरे लोग चूप लगा गये थे । जमुना सिंह उसी मेहरारू की निशानी हैं। परसाल ही तो जमुना सिंह की वड़ी बेटी की अपनी ही जात-बिरादरी के यहां बड़े धूमधाम से शादी हुई है । कहां जमुना सिंह के खून में फर्क पड़ गया है ? ममदू और अगिनिया की दो जातियां हैं तो कौन-सा पहाड़ टूट रहा हैं? जो पैदा होने के दिन से ही रोटी के लिए हाथ-पांव मारता आया हो उसे जात-सम्प्रदाय के बारे में सोचने की कहां फु्सत है जगपत पांडे की इसी नीयत पर कभी-कभी वहुत खीझ होती है। गांव-घर में हर साल कोई न कोई बखेड़ा खड़ा करते रहते हैं। माला-कंठी चन्दन-काठी किस काम के लिए है ? संयोग की वात है भिखारी जैसे ही अपना रिक्शा रेलवे-गुमटी के सामने से दायीं तरफ स्टेशन की ओर मोड़ता वैसे ही सामने दुखित पर नजर पड़ जाती है । हे परमात्मा यह कैसा संयोग है क्या सचमुच भोर की चिन्ता और भोर का सपना सच होता है? भिखारी अचकचाकर रिक्शा रोकता है और उतर जाता है । कहां से दुखी भइया ? समाचार तो ठीक है ? वह पूछता है । दुखित उसके करीब में खड़ा हो गया है । ठीक ही है । तनिक बिटिया की ससुराल चला गया था--मकिआंव । रात की वजह से यहीं मुसाफिर- खाने में टिक गया था । अब उठकर गांव जा रहा हूं । जगपत पांडे कुछ दूसरी ही वात कह रहे थे । कहते होंगे बुआ । गरीब आदमी के बारे में तो और भी भयानक- भयानक बात कही जाती हैं ।




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