तत्वदर्शन | Tatvadarshan

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Tatvadarshan by कमल कुमार जैन शास्त्री - Kamal Kumar Jain Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९ | करने के लिये दो जिनघमेंक्रा आश्रय प्रइण करते हैं । जिससे कि मिथ्यात्व आदि का विभाव हो और निज स्वरुप की प्राप्ति दो जाय । अतः: उस माच भादिंक का नादा करनेके लिये दो यदद काये किया गया है । किन्दु: जो जिनधर्मी का आश्रय प्राप्त करके सी अपने मान आादिक को पुष्ट करते हैं, वे अनन्त संसारी तथा जिनाज्ञा से वद्दिसुंख मिंथ्याइुष्टी हैं । उनका कत्याण होना अद्यन्त कठिन है। जिस प्रकार किसी रोगी को भ्नत का पान कराने से उसे विषरूप मालूम होता है» तो फिर उस' पुरुष को कोई औषधि नहीं छगती । इसी प्रकार इस संसार में जीव को जिनधर्म-रुपी अस्त का पान भी; विपरूप मान; कषाय भादि के संयोग से नष्ट होकर विपवत्‌ ही मालूम होता है' । वद्दां उसका भा नहीं होता 1 इस कारण मान ,आादिका पोषण कदापि नहीं करना चाहिये । सावार्थ--अपना तथा अन्य जीवों का उद्धार करने के लिये ही- तत्वद्दन नामक श्रथ के आधार पर उपदेश रूप में मेंने अपनी दाक्ति के अनुसार विवेचन किया है; अतः भव्य जीव, इसका स्वाध्याय करके: लाभ उठावें 1 , श्री उमास्व्रामी नामक आचार्य विरचिंत जो दशाध्यायरुप तत्वाथ शास्त्र है उसकी देशमापामय वचनिका रूप सार को लेकर भागे में बिवे- चन करूंगा । जददां पर धमतीर्थ का प्रवतन करानेवाले परम पूज्य देवाधि- देव परमौंदारिक दारीर में तिष्ठते हैं. बेह्दां पर भगवान्‌ के कण्ठ; आओष्ठ जिह.वा गादिक ' भंगोपांग के दछन-चलन हुए बिना भव्य जीवों के पुण्य- तथा वचनयोग के उदय से उत्पन्न हुई निरक्षरी दिव्य्वनि खिरती है और उसी दिव्यष्वनि के द्वारा श्री मगवानू मद्दावीर सामी नेम. म को प्रकाश करने के लिये सम्पूर्ण पदार्थों के स्वरूप तथा. आत्मतत्त्व को




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