९६३ आधुनिक हिन्दी साहित्य में आलोचना का विकास १९६८ | 963 Adhunik Hindi Sahitya Me Alochana Ka Vikas 1968
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
680
श्रेणी :
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दिघय का महत्त्व
लगभग पिछले तीन दशाव्दो मे हिन्दी साहित्य के विभिन्न क्षेत्रो मे निरन्तर शोध-
कार्य हो रहा है । साहित्य के विभिन्न अगो, मापा, भापा-विज्ञान, हिन्दी साहित्य का
इतिहास, विभिन्न काव्य-घाराओ का विकास, विभिन्न कवियो तथा लेखकों का साहित्य,
विशेष कृतियो का अध्ययन, साहित्य के विभिन्न रूपो का अध्ययन, लोक-साहित्य, वर्ग
विशेष के कवि-समूहो का अध्ययन आदि विषयों पर विशेष रूप में कायें हुआ है । किन्तु
आलोचना के क्षेत्र मे रचनात्मक साहित्य की अपेक्षा शोध-का्य की प्रगति प्राय धीमी रही
है। डा० राम शकर शुक्ल “रसाल' के 'हिन्दी काव्य-शास्त्र का विकास' तथा डा० भगीरथ
मिश्र के 'हिन्दी काव्य-शास्त्र का इतिहास' नामक छशोघ-प्रबन्धो के अतिरिक्त डा० छल
बिहारी लाल गुप्त 'राकेश' का 'आधुनिक मनोविज्ञान के प्रकाश में रस शास्त्र का अध्ययन,
डा० भोला शकर व्यास का “ध्वनि सिद्धान्त का विस्तार, डा० ओम प्रकाश कुलश्रेष्ठ का
'हिन्दी साहित्य मे अलकार', डा० राजेइ्वर प्रसाद चतुर्वेदी का श्थगार रस सम्बन्धी
प्रवन्घ, स्व० डा० जानकीनाथ सिह 'मनोज' का 'हिन्दी छन्द दास्त्र' और डा० पुतुलाल
छुक्् का आधुनिक हिन्दी काव्य मे छन्दोयोजना', आदि विषयों पर भी शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत
किए गए है ।
इस प्रकार ये शोध-प्रवन्ध दो प्रकार के है, एक तो सामान्य रूप में काव्य-शास्त्र
का विकास प्रस्तुत करने वाले तथा दूसरे अलकार, रस, ध्वति आदि काव्य सम्प्रदायो के
विकास का अध्ययन प्रस्तुत करने वाले। “रसाल' जी के शोध-प्रबन्घ का सम्बन्ध भी अलकार-
सम्प्रदाय से ही अधिक है। डा० भगीरथ मिश्र के नोघ-प्रबल्ध मे हिन्दी के सम्पूर्ण काव्य-
दास्त्र का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है तथा खोज के आधार पर प्राप्त नवीन-सामग्री के
उपयोग पर अधिक ध्यान दिया गया हैं । उसमे सामान्य रूप मे आचार्यों, रीतिकारो तथा
आधुनिक आलोचको के काव्य-शास्त्र सम्बन्धी मतो और सिद्धान्तो की कुशल तथा विद्व्ता-
पूर्ण विवरण दिया गया है । यह प्रबन्ध एक विद्ेप दिशा में वाछनीय, सफल तथा महत्त्वपूर्ण
प्रयत्न है। किन्तु यह हिन्दी साहित्य के इतिहास के सम्पूर्ण काल को लेकर चलता है, केवल
किसी एक काल को नही । भारतीय काव्य-सम्प्रदायो के विकास का पृथक्-पृथक् अध्ययन
तथा विवेचन इसकी शोध-सीमा के वाहर प्रतीत होता है । हिन्दी मे इन सम्प्रदायो के
विकास के अध्ययन का अभाव अभी तक वना है। सस्कृत मे भी इन सम्प्रदायो के ऐतिहासिक
क्रम-विकास का कार्य पूर्ण रूप मे नही हुआ है। जव सस्कृत में काव्य -सम्प्रदायों के ठिकास
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