नव निबंधवाली | Nav Nibandhavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nav Nibandhavali by श्री सुन्दरलाल जैन - Shri Sundarlal Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री सुन्दरलाल जैन - Shri Sundarlal Jain

Add Infomation AboutShri Sundarlal Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १३ और कटीली झाड़ियों से विराग उत्पन्न हुआ। कहने का तात्पयं यह कि मनुष्य की' रागात्मक' वृत्तियो की उद्भावनां समाज-संघटन के पूर्व बन गयी थी। उनके आग्रह पर मनोभावों की' अभिव्यक्ति की प्रेरणा उत्पन्न हुई। फिर संकेतों और भावसूचक ्वनियों का जन्म हुआ । सकेतों की' चित्रात्मकता और: प्रतीकात्मकता तथा भावों के अर्थ की' स्थापना जब ध्वनियों में हो गयी, तो साथंक दाब्द और भाषा बनी। यहाँ स्मरण रहे कि संकेतों और भावों की प्रतीकात्मकता की स्थापना का अथे है अनेक व्यक्तियों पर उन संकेतों और भावों के निश्चित अर्थ ही का ज्ञापित हों जाना, अधोतू उनका सबके लिए बोधगम्य, ग्राह्म और मान्य होना । यह निरन्तर के व्यवहार और अभ्यास से ही हुआ होगा। पर यदि भाषा सामूहिक जीवन की उपज हूँ, तो हमें मानना पड़ेगा कि भाषा निश्चय ही समाज-संघटन में अत्यधिक सहायक सिद्ध हुई होगी। उसी प्रकार, प्रारंभ मेँ मनुष्य का भावकोष सीमित था, शब्द थोड़े थे, उनके अथ भी सरल थे; क्योंकि जीवन की' परिस्थितियों सरल भर गिनी-वुनी थी । जेस-जसे समाज का जीवन जटिल होने लगा, भावों, अनुभूतियों और भाषा में संक्लिष्टता का प्रवेश होने लगा। इस प्रक्रिया को विभिन्न काल के साहित्य में स्पष्ट देखा जा सकता हूँ । जैसे, वैदिक ऋषियों की ऋचाओं और मंत्रों में भावाभिव्यक्ति की' योजना नितान्त सरल और सीधी है; क्योंकि उस काल का जोवन ही सरल और सीसित था। पर, ज्यों-ज्यो समाज-संस्थाएँ सघटित होती गयीं, त्यों-त्यों मनुष्य के भावलोक में भी जटिलता आती गयी। साथ ही, शब्द-कोष और जर्थकोष में भी अभिवुद्धि होती गयी। फरूतः साहित्य में कमश: संछ्लिष्ट भावों की योजना होने लगी । इस विवेचन से हम दो स्पष्ट निष्कर्षों पर पहुँचते है: (१) समाज का जीवन जितना जटिरू होता जायगा, साहित्य में उतनी ही संर्लिष्टता भाती जायगी; (२) साहित्य में जितने प्रकार के भावों की योजना आयगीं और जितनी व्यापक अनुभूतियों का बिम्ब ग्रहण होगा, उसकी अपील, उसकी प्रेषणीयता उतनी ही व्यापक, विशुद्ध और मार्मिक होगी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now