सामयिकी | Samyiki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
342
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युग-ददन के
चेतनाके अभावमें पुरुष-जात ऐन्द्रिक सम्यता एकाज्ली तो है ही, साथ
शी वह पौरुपेय भी नहीं बनी रह सकी, क्योंकि पुरुष पुरुष न होकर
पदुमात्र रह गया । नारीको जड़ घाठुओमे फेककर पुरुष केसे पुरुष
कहला सकता है, वह तो बिना सानवीके मानवताकी एक विडम्बनामात्र
है | पाशविक अहक्वार ही पुरुषका पुरुषत्व बन गया है । पुरुषका
इतना अहट्टार कि अपने एकतन्त्र अहमूके लिए नारीको भी जड़-सम्पत्ति
बना दिया ! वह सामाजिक प्राणी न रहकर वनचर हो गया है जो अपने
सिवा शेप सष्टिको भक्ष्य समझता है | पुरुषकी इसी भक्षण-नीतिके
कारण उसकी ऐतिहासिक सभ्यता भोग-प्रधान है । भोगवादने ही सत्-
चित्-आनन्द--सच्चिदानन्द--की श्रज्लछाको विच्छिन्न कर दिया है ।
नारीके उद्धारसे ही पुरुषको अपने अहड्डारकी क्षुद्रताका बोध होगा ।
जडतासे चेतनामे आकर यदि नारी फिर नरकी अन्घ-अलुरक्ति नहीं बनी,
वदद अपना मौलिक विकास कर सकी तो पुनः उसीके द्वारा सच्चिदानन्द-
की श्ड्डुला जुड़ेगी । युगोतक जड़ सम्पत्तिमे परिगणित होनेके कारण
वहद जड़ताके वास्तविक मृब्य ( निस्सारता ) को समझ गयी होगी,
फलत: नर-निर्मित नरकको 'वेतनाका स्वर्ग बनायेगा :
जी
आजकी स्थूल समस्या
उस भावी खप्न-युगके पूर्व, आजकी समस्याकों आजके स्थूछ कले-
वरमे देखे । आजका सारा युग और सारी समस्या है---रूप और सपया ।
प्वाहे चाहे सात्विक
इसे सरस भाषामें चाहे कामिनी और काश्यन_कहिये, चाहे
भाषामें आद्ार-विह्ार; आजकी भाषामे तो इसका यथाथं-पर्याय है--ोटी
कटनी प्पण्य
और सेक्स । रोटी अर्थात् सम्पत्ति, सेक्स-अर्थात् नारी । आज भी नारी
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