सुकवि - समीक्षा | Sukavi - Samiksha
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्ता कनीर दृ्
कंगीरा टँसना दूर कर, रोने से +क६ गप्रीत ।
विन रोये क्यों पाइ्ये, प्रेम पियारा+ मीत ॥ कि
कघीर का उदेश्य साधना; खान अथवा भक्ति द्वारा अपनी
मुक्ति आत्त करने के अतिरिक्त जनता को भी सही माग दिखाना
था । वे निश्चितस्रूप से सुधार+क, उपडेशक तथा घम-न्चारक थे ।
कान्य उनको ससथ ने था | अतः उनके बनाए हुए पढ़ों में बुध
अधिक शुष्फता या रूखापच से पाते हैं । इतसिए उनकी रचना
में दमें पथ अथवा शुद्ध भाषा के ऊपरी आुख तक मी नहीं
मिलते-छत्दों की गति अशुद्ध है, मानाओों का कोई जिचार नह
है, ८छान्तों आदि में प्राय: श्रृत 'और अन्त के भाव-तामंजस्थ
को या नहीं की गई हैं, उनमें आय: भावों का अनोचित्थ देखा
जाता है. ग्लानिन्यंजक अश्दील अयवा आर्य भावों तथा शब्दों
को प्रयोग कर दिया गया है । भाषा भी इनको नड़ी विधि है;
जिसमें जगह जगह की वोलियों व्यौर शब्दों का सम्मेत है 'ोर
नेसेल शब्दों को आय: एकन संस्यान कर दिया गया है । शब्दों को
रवे न्याचुसार इन्होने तोड़ा-मरोडा थी है । इनकी नदुत सी जुटियों
के उदाइस्ख पीछे दिए गए उद्धरखों में दी मिल जाएँगे ।
तग्हीलवां 'भाडि का उदाइस्ण हम यहाँ देना नहीं चाहते ।
न्याकरणा को नुटि पिछले किसी उदाहरणु में ाउएं हुए निया न
. जाय में देली जा सकपी हैं |
परणु भाषा का परिल्यद कुछ असमथ होने पर भी यदि
कई मभाषों को सुसंपणता 'आोर शक्ति हुभे स्खिई पी तो दम
वहीं कंब्यत्व सानेंगे । करीर जहाँ भावुक हो गए हैं वां कीं
कहीं तो नव दी ऊँची कविता है । लाई के अति भावना 'की
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