सुकवि - समीक्षा | Sukavi - Samiksha

Sukavi - Samiksha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महात्ता कनीर दृ् कंगीरा टँसना दूर कर, रोने से +क६ गप्रीत । विन रोये क्यों पाइ्ये, प्रेम पियारा+ मीत ॥ कि कघीर का उदेश्य साधना; खान अथवा भक्ति द्वारा अपनी मुक्ति आत्त करने के अतिरिक्त जनता को भी सही माग दिखाना था । वे निश्चितस्रूप से सुधार+क, उपडेशक तथा घम-न्चारक थे । कान्य उनको ससथ ने था | अतः उनके बनाए हुए पढ़ों में बुध अधिक शुष्फता या रूखापच से पाते हैं । इतसिए उनकी रचना में दमें पथ अथवा शुद्ध भाषा के ऊपरी आुख तक मी नहीं मिलते-छत्दों की गति अशुद्ध है, मानाओों का कोई जिचार नह है, ८छान्तों आदि में प्राय: श्रृत 'और अन्त के भाव-तामंजस्थ को या नहीं की गई हैं, उनमें आय: भावों का अनोचित्थ देखा जाता है. ग्लानिन्यंजक अश्दील अयवा आर्य भावों तथा शब्दों को प्रयोग कर दिया गया है । भाषा भी इनको नड़ी विधि है; जिसमें जगह जगह की वोलियों व्यौर शब्दों का सम्मेत है 'ोर नेसेल शब्दों को आय: एकन संस्यान कर दिया गया है । शब्दों को रवे न्याचुसार इन्होने तोड़ा-मरोडा थी है । इनकी नदुत सी जुटियों के उदाइस्ख पीछे दिए गए उद्धरखों में दी मिल जाएँगे । तग्हीलवां 'भाडि का उदाइस्ण हम यहाँ देना नहीं चाहते । न्याकरणा को नुटि पिछले किसी उदाहरणु में ाउएं हुए निया न . जाय में देली जा सकपी हैं | परणु भाषा का परिल्यद कुछ असमथ होने पर भी यदि कई मभाषों को सुसंपणता 'आोर शक्ति हुभे स्खिई पी तो दम वहीं कंब्यत्व सानेंगे । करीर जहाँ भावुक हो गए हैं वां कीं कहीं तो नव दी ऊँची कविता है । लाई के अति भावना 'की




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