जैन शोध और समीक्षा | Jain Shodh Aur Samiksha
श्रेणी : आलोचनात्मक / Critique, जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). दोनों पक्ष गुलाब की सुगन्घि श्रौर सुन्दरता की भांति प्रभावंकारी हैं ।. रस. त
प्रवण हैं । ँ
:...' मंध्यकालीन हिन्दी साहित्य में श्रात्मचरितों की रचना श्रत्पादपिश्रल्प
हुई, नहीं के 'वराबर । किन्तु, एक ऐसा ' आत्मचरिंत है, जिसकी सत्ता श्रौर
साम्थ्य-भ्राज के समीक्षक विद्वान भी स्वींकार करते हैं । उसके रचयिता कवि
बनारसीदास थे । नाम है श्रर्घकथानक .। श्रात्मचरितों के श्रधिकारी ज्ञाता
श्री बनारसीदास चतुर्वेदी ने “श्रधंकथानक' को श्रादशं श्रात्मचरित माना है ।
इसका झ्रथे है कि आ्रात्मकंधी की कसौटी पर वह खरा है। उन्होंने: लिखा है
*“्रपने को तटस्थं रख कर श्रपने सत्कर्मों तथा दुष्कर्मों पर दृष्टि डालना, उनको
विवेक की तराज पर वावन तोले पाव 'रत्ती तौलना; सचमुच एक महान कला-
पुर्ण कार्य है । श्रघंकथाोनक में यह गुण है ।” डॉ० माताप्रसाद गुप्त ने भी इसका
“प्रधेकथा' नाम से सम्पादन किया था श्रौर “साहित्य परिषद, प्रयागविश्व-
विद्यालय. से उसका प्रकाशन भी हुभ्रा था । उनकी मान्यता है, “कभी-कभी यह
देखा जाता है कि श्रात्मकथा लिखने वांले श्रपने चंरित्र के कालिमा पूर्ण भ्रंशों पर
एक श्रावरण-सा डाल देते हैं--यदि उन्हें संधा वहिष्कृत नहीं करते--किन्त यह
दोष प्रस्तुत लेखक में विलकुल नहीं है ।*” पं० नाथुराम प्रेमी का कथन है
“इसमें कवि ने श्रपने गुणों के साथ-साथ दोषों का भी उदघाटन किया है, शौर
सर्वेत्र ही 'सचाई. से काम लिया हैं ।5” इस सब से सिद्ध है कि “अ्रघेंकथानक
: सध्यकाल की एक सशक्त कृति थी । “खड़ी बोली की पुट' वाला यह श्त्मचरितत
शअ्रत्यधघिक 'आरासान श्रौर रुचिकारक है । न-जाने क्यों कॉलिजों के पाठंयक्रम में
अभी तक; इसको स्थान नहीं मिला है ?
:. . . .मध्यकालीन हिन्दी मुक्तक पद काव्य क्षमतावांन हैं। विविधराग-
. रागिनियों से समन्वित, वाद्य यन्त्रों पर खरा श्ौर श्रुतमधघुर । भाव की गहराइयों
. क़ो.लिये हुए । सुरदास के.पद काव्य से किसी प्रकार कम नहीं ।
- 'भगवदुभक्ति' के क्षेत्र में सुरदास 'वात्सल्यरस के एकमात्र कंवि माने जाते
हूं । तुलसी ने भी वालक राम पर लिखां, किन्तु वह: महाकाव्य के कथानक के
१... हिन्दी का - प्रथम - आत्मचरिंत',' बनारसीदास चतुर्वेदी “लिखित, - झनेकांत, वर्ष “६;
' किरण १, पृ० २१ । ः ४
२. ्र्घकथा, डॉ० माताप्रसाद गुप्त :सम्पादित, प्रयाग, भूमिका, -पृ० १४ ।
३.. श्रघेंकथानक, भूमिका, वम्बई, पृ० २२।
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