प्रबन्ध - प्रभाकर | Prabandh Prabhakar

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Prabandh Prabhakar by गुलाबराय - Gulabrai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इक लेखन कला- के सम्चन्ध में कुछ श्ञातव्य बातें हर विदेशी भाषाओं वे: शब्दों के प्रयोग के सम्बन्ध में कुछ लोगों का दो यह कथन है कि दूसरी भाषा का एक भी शब्द लाने की द्ावश्यकता * नहीं है । थर्मामीदर को तापमापक, फोटोग्राफी को: छायाचित्रणं दि संस्कृत शब्दों से. पुकारा जाय | इसके. विपरीत छुछ लोग वेधड़क अंगरेज़ी, फारसी, अरबी ्ादि भाषाओं के शब्दों के पक्त में है । अन्य भाषाओं के जो ' शब्द प्रचार में झा गये हैं उनके स्थान में प्रचलित शब्द रखना अधिक युक्ति-संगत नहीं है । यद्यषि झन्य भाषाशओं के शब्दों की झ्रपेक्ा संस्कृत के शब्द श्रधिक ग्राह्म समके जाते हैं, तथापि केवल पांडित्य- प्रदर्शन के लिए. संस्कृत शब्दों का प्रयोग उचित नहीं | शब्दों का श्चर-विन्यास ( हिजे ) एक सा ही होना वांछुनीय है । यदि संस्कृत के ढंग से श्रनुस्वार के स्थान में पंचम वर्ण का प्रयोग किया जाय तो वैसा ही' सब्र स्थानों में करना उचित होगा | उपयुक्त शब्द-योजना के श्रतिरिक्त श्रच्छे लेखक को वाक्य-संगठन की आर ध्यान देना श्रावश्यक है । प्रायः वे वाक्य श्रच्छे समझे जाते हैं जिनका आशय अन्त में पूरा हो जिस से वाक्य के खतम करने तक त्राकांच्ा और कौतूइल बना रहे । ऐसे वाक्यों को वाक्योश्चय (19710) कहते हैं । नीचे का वाक्य देखिए:-- 'सम्यता की बृद्धि के साथ-साथ ज्यों-ज्यों मनुष्य के व्यापार बहुरूपी और जटिल होते गथे त्यों-त्यों उनके मूलरूप बहुत कुछ झाच्छन छोते गये । ( ओाचार्य रामचन्द्र शुक्ल ) - , . शिथिल वाक्य (1.0056)--ऐसे बाक्यों में अनुचित विस्तार- दोप दो जाता है। एक विशेषणु-वाक्य में दूसरा विशेषण-वाक्य लगाना भी श्रच्छा -नहीं समभा जाता । कभी कभी एक-से संगठन के वाक्यों का तारतम्य उपस्थित करना कथन की प्रभावोत्पादकता.को बढ़ा देता है | ऐसे वाक्यों को समीक्ृत '(8द150८०त) वाक्य कहते हैं । नीचे का वाक्य इसका उदाहरण हैः--




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