शरत साहित्य [34-३५] | Sharat Sahitya [34-35]
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
351
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ए शेष परिचय,
मैट्कि कञासके लड़के पढ़ाने होंगे, उन्दे पास कराना दोगा--वह क्वालिफिकेशन
+( योग्यता ) क्या...”
तारकने कद्दा--वे लोग कालिफिकेशन नहीं चाहते । वे चादते थे यूनिव-
सिंटोकी छाप ( सर्टिफिकेट )। वे सब “* मार्के ” मैंने कर्ता-घर्ता छोगोंके
दरवारमें पेश किये--भजी मजूर दो गई। लड़के पढानेका मार मेरा है,
लेकिन उन्दें पास करानेका दायित्व उनका है ।
राखालने गर्दन हिंलाते-दहिलाते कहदा--यह कहनेसे काम नहीं चलता भाई,
“काम नददीं चलता ।
इसके वाद ही गभीर होकर राखालने कदा--लेकिन मुझसे भी तो तुमने सच
चात नहीं कद्दी तारक । कद्दा था कि तुमने कुछ अधिक पढ़ा लिखा नहीं ।
तारकने इईसकर क्द्वा--अब भी वहीं कदता हूँ--युनिवर्सिटीकी छाप है,
लेकिन जिले यथार्थ पढ़ना-लिखना कहना चाहिए, वह नहीं हुआ । उसके लिए
समय दी कद्दों पाया ! किताबें रटनेकी पाली समाप्त होते दी नौकरीकी उम्मेद-
चारी में लग गया । इसमें दो-तीन साल गुजर गये । उसके वाद देवसयोगसे तुमसे
परिचय हुआ और तुम्दारी दयासे कलकत्ते आकर साधारण खाने-पद्ननेको पा
नददा हूँ ।
राखालने कदा--देखो तारक, फिर अगर तुम. « «
अकस्मात्, सामनेके आईनेमें दोनों मित्नोंके प्रतिवियके सिरपर और एक
छाया दिखाई पड़ी । वह नारी-मूर्ति थी । दोनोंने घूमकर देखा--एक अपरिचित
मदिला लगभग फमरेके मध्यभाग्यम भा खड़ी हुई हैं । बेशक मद्दिला ही हैं ।
अपस्था शायद योपनके दूसरे सिरेपर पैर बढा चुकी है, किन्तु यदद वात नजर
जहीं आती । रंग वहुत ही गोरा है, शरीर छुछ रोगी-सा है, लेकिन सारे अगोमि
असीम मर्यादाका भाव भरा हुआ दे । मायेपर सोहागका चिढ् है । गरदकी साड़ी
पढ़ने दे । दाय-गढेमे दो-एक प्रचलित साघारण आभूषण जसे सामाजिक री तिका
पालन करनेफे ठिए ही पदन रखे है ।
दोनों ही मित्र उछ देर स्तच्घ विस्मयसे ताझऊते रहे । एकाएक रायाल दुर्सी
उोपकर यद कदता हुआ उछल पढ़ा--“ यद क्या | नई-मा हूं 1” इसके वाद ही
चंद उनके पैरॉपर पट पढ़ गया । दोनों परोंपर सिर रखदूर उसका यह सांग
पणाम जैसे नमाप्त ही दोना नहीं चादता या 1
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