अपूर्व अवसर | Apurva Avsar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सपूस अवसर |] ७ है. क्या ? स्या संसारी मेपमें सुनिभाव नहीं आता ? या वस्त्र सदित मुनि नहीं दो सकता क्या ? क्या त्यागी दोनेसे सुनित्व प्रगठ हो सकता है ? इन सब प्रदनॉका उत्तर यदद है कि-- घुवस्वभावके आलम्वनके वल द्वारा अनन्तानुवन्धी, प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, उन तीन जातिके चतुकंपायोंके त्याग होते रागणे सब निमित्त सद्दज ही छूट जाते हैं, इस- लिए मुनिके केवल देह रदती है। सस्यग्तान सहित नग्न- दिगम्वर निदग्नेन्थ सुनिदशाकी यह भावना है। जितना राग छूटे उतना रागका निसित्त कट जाता है यह नियम है, मुनित्व सर्वोत्छ् साधक दद्या है। जव सातवां और छठा णुणस्थान चारस्वार चदलता रहता है वहाँ महान पवित्र वीतराग दशा ओर दांतमुद्रा होती है । आत्मामें अनन्त ज्ञान, वीयेकी शक्ति है। आठ ब्रेक वाटकके-केवदकान दो जाने और करोड़ वर्ष पूर्वकी आयु रहे तव तक शरीर नग्व- रहे और महापुण्यवन्त परम ओदारिक शरीर वना रहता है ऐसा प्राकूतिक सकालिक नियम है। मुनि अवस्थामें मात्र देहके अर्तिरिक्त यन्य कुछ भी नहीं रहता । देह होने पर भी देहके प्रति ममत्व नहीं है । गेडी भगवानकों रोग, आहार भगवानको रोग, आद्ार-चिहार उपसभगग, श्वुः या-दपादि १८ दोष कभी भी नह । 'सात्र देह ते संयम हेतु दोय जो” क्ञानियोंके संयम हेतु, देहको देहकी रिथिति पयेन्त टिकना है, सुनिको छद्मस्थद्द्यामें राग है तय तक दरीर संयमके निर्वाइके लिये नग्न शरीर साधक है, फिन्तु इसछिए भी दारीरकी कुद्दाठताकें लिये साधुको ममत्व नहीं होता। यह वात यथास्थान कही गई है, मुनित्वकी भावना और मुनिके स्वरूप कैसे हों यह जानना




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