महाराणा यशप्रकाश | Maharana Yashprakash

Maharana Yashprakash by भूरसिंह शेखावत - Bhoorsingh Shekhawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महदाराणायणप्रकाय | (५) गुर रऊसेरसेरेंसेंसें पेट श मा राग सन नए+ कान ऊना, मा, नया जन ले दस - ज- उ. देन *).. गढ़ गढ पएत गाज सहठाता; जि म कुछ साराँसें येम कद्या ॥। ट 2. समदां पं न गो दससंहसो: दि भ राम बाणरे सांह रद्यो ॥ ४॥ ं ५ 1: 'नोट-सोदा वारहठ कृष्णसिहजीका मत है कि यह (« भ गीत वापाके समयका वना इआ नहीं प्रतीत होता किसी कविने पीछेसे वनाया है । दे भ टीका-महाराणा वापाने अपने? प्रवजाका मर्यादा नहीं | दे *) छोड़ी। किन्तु प्रवठ वापाने र सागराक ३ मध्यका ४ हि उ५ सूमिकों अपने वठसे जातला ॥ १ ॥ दे अतुल चलशालोा उ भागा अथातू ५ न्याछावर करने योग्य मवादपात बापा ६ ६, + तन मारियाका नाद करडाला । है गावल . तन ६ रामचन्द्रका न सयोदाकों नहीं तोड़ा और सात समुद्राके वीचम अपन £« राज्यका सामा नियत करला ॥ २ ॥ क्षत्रियाम गुरु अथोत्‌ £ श्रेष्ठ वापाने ७ उस <८ नहीं इटनेवालों मयोदाकों *. सहनक “| और अपने वठसे पचास कोटि योजन पृथ्वी छेठी ॥ है ॥ द १) १० दा हजार गामाक पति गहठोत वंश वापाने अनेक 2 गढ़ और गढ़ृपतियाका गये गजन किया अथांतू जीतलिये । 3 और समुद्रॉंके पार नहीं गया मानों रामवाणकी जो मर्यादा | 2 हे उसके इस पारही रहा नहीं तो वापा समस्त भूमण्डल के रे ठता | भाव यह हू कि वापाने पचास कोटि योजन भमिही नर न ( लेलीप॥४॥ दे दे दापावराटटनटटररपरापा सा पद गर्ल न ग्क्ग्क्क््कू




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