मैं तंदुरुस्त हूँ या बीमार | Main Tandurust Hu Ya Bimar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विजातीय द्रव्य १७
मल-मूत्र-त्यागके स्थानोंके निकट इकट्ठा होता है |
फिर उसमें नित्य नया विजातीय द्रव्य मिलकर
उसकी मात्रा वढ़ती रहती हू और शीघ्य ही अंदर-
ही-अंदर उसमें एक. परिवर्तन होने कछगता है।
उसके रेद्दो विखरने लगते हूं और उनमें प्रकोप, या
कहिएं सड़न, पैदा हो जाती हूँ । विजातीय द्रव्य घुलकर
दारीरमें ऊपर तथा नीचेंके हिस्सोंमें फैलता है और
धीरे-धीरे शरीरके भिन्न-भिन्न हिस्सोंमें जमा हो जाता
हैं। यह द्रव्य पेड्से ऊपर सिरतक और दूसरी ओर
हाथ और पांवकी सीमातक, पहुंचें विना नहीं रुकता ।
उस समय शरीर इसे हर कोशिदासे बाहर निकालना
चाहता है, पर अधिक कालतक वह इस क्रियामें
समर्थ नहीं होता । :इस कोशिशामें शरीरपर वहुत
ज्यादा पसीना आता है, फोड़े-फुंसियां आदि अन्य
क्रियाएं होती हें । शुरूमें यह सदा हाथ-पेरोंमें होती
हैं । पांवका' पसीजना--जिसके संबंधमें इतना अधिक
मतभेद हैं--दरअसक्त दारीरकी सफःइईके नए ही होता
हैं। वास्तवमें यह रोगका लक्षण हैं। लेकिन इसे
कृत्रिम उपायोंसे रोकनेका फल केवल यह होगा कि
वारीरमें अव्यवस्था बढ़ेगी । शरीरकों उत्तेजित करने-
वाली घटनाएं, जैसे आकस्मिक ठंड, वाहरी चोट, प्रवछ
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