मैं तंदुरुस्त हूँ या बीमार | Main Tandurust Hu Ya Bimar

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Main Tandurust Hu Ya Bimar by महावीर प्रसाद पोद्दार - Mahavir prasad Poddar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विजातीय द्रव्य १७ मल-मूत्र-त्यागके स्थानोंके निकट इकट्ठा होता है | फिर उसमें नित्य नया विजातीय द्रव्य मिलकर उसकी मात्रा वढ़ती रहती हू और शीघ्य ही अंदर- ही-अंदर उसमें एक. परिवर्तन होने कछगता है। उसके रेद्दो विखरने लगते हूं और उनमें प्रकोप, या कहिएं सड़न, पैदा हो जाती हूँ । विजातीय द्रव्य घुलकर दारीरमें ऊपर तथा नीचेंके हिस्सोंमें फैलता है और धीरे-धीरे शरीरके भिन्न-भिन्न हिस्सोंमें जमा हो जाता हैं। यह द्रव्य पेड्से ऊपर सिरतक और दूसरी ओर हाथ और पांवकी सीमातक, पहुंचें विना नहीं रुकता । उस समय शरीर इसे हर कोशिदासे बाहर निकालना चाहता है, पर अधिक कालतक वह इस क्रियामें समर्थ नहीं होता । :इस कोशिशामें शरीरपर वहुत ज्यादा पसीना आता है, फोड़े-फुंसियां आदि अन्य क्रियाएं होती हें । शुरूमें यह सदा हाथ-पेरोंमें होती हैं । पांवका' पसीजना--जिसके संबंधमें इतना अधिक मतभेद हैं--दरअसक्त दारीरकी सफःइईके नए ही होता हैं। वास्तवमें यह रोगका लक्षण हैं। लेकिन इसे कृत्रिम उपायोंसे रोकनेका फल केवल यह होगा कि वारीरमें अव्यवस्था बढ़ेगी । शरीरकों उत्तेजित करने- वाली घटनाएं, जैसे आकस्मिक ठंड, वाहरी चोट, प्रवछ £




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