देवराज उपाध्याय की स्वच्छन्दतावादी समीक्षा - दृष्टि | Devraj Upadhyay Ki Swachchhandatawadi Sameeksha - Drishti

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Book Image : देवराज उपाध्याय की स्वच्छन्दतावादी समीक्षा - दृष्टि  - Devraj Upadhyay Ki Swachchhandatawadi Sameeksha - Drishti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१२) हूँ। जब हम स्वच्छन्दतावाद को आध्यात्मिकता से जोडते है तो फिर उसे केवल अन्तर्राष्ट्रीय अथवा वैश्विक विचारधारा मान लेना इसके असीमित क्षेत्र को सीमित कर देना है और यह स्वच्छन्दतावाद के प्रति एक अन्याय है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ मे मुझे कुछ निराशा सी हो गयी थी जब मुझे डॉ० देवराज उपाध्याय द्वारा स्वच्छन्दतावादी अवधारणा पर लिखित एक मात्र ग्रन्थ रोमाण्टिक साहित्य शास्त्र की प्राप्ति मे विलम्ब हो रहा था। प्रारम्भ मे तो ऐसा लगा कि शायद मुझे विषय परिवर्तन न करना पडे किन्तु अन्तत मुझे यह पुस्तक प्राप्त हो गयी और आज मुझे अपने इस ग्रथ का प्राक्कथन लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे स्वच्छन्दतावाद के महान ज्ञाता और अन्तर्राष्ट्रीय समीक्षक प्रोफेसर अजब सिह के दिशा निर्देशन मे कार्य करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। अध्ययन व अन्वेषण के क्रम मे मुझे प्रोफेसर अजब सिह से अदम्य प्रेरणा प्रोत्साहन और स्नेह प्राप्त हुआ है। अपनी अत्यधिक व्यस्तता के मध्य भी डॉ० सिह ने मुझे समय दिया जिसके लिए मै हृदय से आभारी हूँ। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सह उपकुलपति प्रो० एच० ए० एस० जाफरी के प्रति आभारी हूँ कि उन्होने एक विस्तृत आमुख लिखकर अपना मन्तव्य प्रकट किया आपकी प्रेरणा एव प्रोत्साहन शब्दातीत है । मै उन समस्त विद्वानों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ जिनके विचारों से मुझे ज्ञान रूपी प्रकाश मिला । उन विद्वानों मे प्रोफेसर दीनानाथ सिह आचार्य एव अध्यक्ष हिन्दी विभाग वीर कुूँवर सिह विश्वविद्यालय आरा (बिहार) इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रो० योगेन्द्रप्रताप सिह सेप्ट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद (आ० प्र०) के प्रो० विजेन्द्र नारायण सिह तथा अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ हिन्दी विभाग के प्रो० शाण्डिल्य डॉ० आर० सी० शर्मा आदि प्रमुख है। प्रस्तुत ग्रथ लेखन के लिए मै मौलाना आजाद पुस्तकालय के सचालको एव हिन्दी विभागीय पुस्तकालय की सचालिका के प्रति भी आभार व्यक्त करती हूँ तथा उनके सहयोग के लिए सदैव ऋणी रहूँगी। इस अवसर पर मै अपने जीवनसाथी श्री निसार हैदर रिजवी को कैसे विस्मृत कर सकती हूँ। सदैव आगे बढने की प्रेरणा मुझे आपसे ही मिली है। प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखन के समय मुझे पारिवारिक दायित्वो से मुक्त करना पुस्तकालय एव इधर उधर से पुस्तके एव लेखन सामग्री लाकर देना टकण के लिए सामग्री इत्यादि उपलब्ध कराना ये सब श्री रिजवी के सहयोग एव सहायता से ही सम्भव हो सका है। अपनी पैंच वर्षीय पुत्री आफरीन एव दो वर्षीय पुत्र अहमद का सहयोग भी मेरे लिए चिरस्मरणीय रहेगा। दोनो ने ही मुझे इस ग्रन्थ लेखन मे पूर्ण सहयोग दिया । छोटे भाई को सहयोग देने का दायित्व आफरीन ने बडी कुशलता से पूर्ण किया । इस अवसर पर मैं अपने स्व० पिता एच० एम० कुद्रसी को विस्मृत नहीं कर पा रही हूँ। हिन्दी साहित्य व भाषा के चयन के प्रेरणास्रोत मेरे स्व० पिता ही थे। अपनी माता




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