सत्य धर्म्म विचार | Satya Dharmm Vichar

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Satya Dharmm Vichar by स्वामी दयानन्द सरस्वती - Swami Dayananda Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्यघमत्रिचार ॥ (१३) काश में चने रहसे है श्र उन परमाणुओं में जो संयोग भौर वियोग ऋ की शक्ति व + १ च चर ५, ढे दूं तो वद्द सदा नम रदते हु ॥ जसा सट्टी रो घड़ा बनाया जो ।के बनाने के पा नहीं था '्लौर नाश होने के पथ्चात्‌ भी नहीं रहेगा, परन्तु उस में जो मढ्टी दे वह नष्ट अल कक, नहीं होती शोर जो गण अथोत्‌ चिक्नापन चसमें हे ।कि जिस से वह पिण्डाकार होता हे वह भी सट्टी मे सदा से हे, बेसे दो संयोग और वियोग हो ने की यो ग्यत्ता परमाणुओं रै में सदा से दै इस से यह समझना चाहिये कि उन परमाणु द्रव्यों से यह जगतू घना के. ५ # भा हज कर थ _ च ९ दे, वे द्रव्य भनादि ४, काय्य द्रव्य नहीं 'झौर मेंने यदद कब कहा था कि जगत्‌ के पदार्थ स्वयं अपने को बना सकते हैं, मेरा कद्दना तो यह था कि ईश्वर ने चस कारण से १९ च्पैद जगत को रा है ॥। रा ५ #५ 4 जद ११९, च्पे ह छू सब छोग देखते हैं कि अग्नि में बहुतसे पदाथे जठजाते हें भब विचार क- रना चाहिये कि जब कोई पदाथे जलजाता हे तो क्‍या हो जाता है | देखने सें आता ०, र ९ #+ 3 _*+० दे कि लकड़ी जछ कर थोड़ीसी राख रदती हे तो अब यदद विचारना चादिये (के जछने से चह्द पदार्थ ही नष्ट दो जाता दे वा उसका स्वरूप दी बदल जाता दे, जब मोमबत्ती जछाते हैं तो देखने मे चद्द मोम नहीं रदता, यह नद्दीं जान पडता [कि कहां गया परन्त सस सोस का स्त्रूप बदुढ कर वायु के सदददा दो जाता दे ओर इसी कारण चायु में मिछ जाने.से दृष्टि में नट्टीं आना ॥। इस की परीक्ष। के लिये एक बोतल के भीतर सोमबत्ती जछाश्ों भौर उस का मख बंद कर दो तो उस बत्ती का जितना भाग वायु के सद्झ दो जावेगा वह्द घोतल से चाहदर नद्दीं जा स्रक्रेग। पर थोडी देर के पीछे यह दिखलाई देग। कि वद्द बत्ती चुझ गईं || अब यदद सोचना 'चाहिय कि बत्ती क्यों जुझ गई ! श्यौर बोतल के वायु में अब कुछ मद हुआ वा नहीं १ । इस बात की परीक्षा इस प्रकार होगी कि थोड़ासा चूने का पानी उस बोतल में भौर एक भौर बोतल में कि जिसमें केवल वायु भरा हुआ हो 'श्रौर उसमें को ई बत्ती न जी दो डाछो, तो यद्द दिखलाई देगा कि जिस बातिठ में बत्ती जली है उसमें च्चूने का रंग दूं सा हो जावेगा और दूसरा बोतछ का जेसे का तैसा रदेगा, इस से सिद्ध हुष्मा ककि बत्ती के जलाने से कोई नई वस्तु बोतल के वायु में सिछ गई दे | वह एक चस्तु चायु के सह है कि जो दृष्टि में नहीं आता अब देखना चाहिये कि मोसबत्ती का कोई परमाणु नष्ट नह्दीं होता पर जिन पदार्थों से चह्द बत्ती बनी दे उत का स्वरूप पिन्न हो जाता है ॥




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