भारती भूषण | Bharti Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) सरोज' झथवा “श्रीपति-सरोज' में झलंकारों का झलग 'दल' हे तथैव 'झलंकार-गंगा' में केवक झलंकारों का ही निरूपण हे । महाराज जसवंतर्सिंह, मतिराम, भूपण, रसिकसुमति, राजा गुरदत्तसिंह, दलपतिराय, वंसीधर, रघुनाथ, टूलह, शंसुनाथ, ऋषिनाथ, बैरीसाल, दत्त, नाथ,चंदून, रामसिंद, भान, बेनी, बेनीप्रबीन, पद्माकर, ग्वाठ, श्तापसाहि, रामसहाय, शिंव, कलानिधि, गोकुछनाथ, सूरति, दृरिराम निरंजनी, लेख- राज तथा उत्तमचंद भंडारी आदि अनेक आचार्यो ने झलग-झलग अंथ बनाकर उनमें केवल झलंकारों ही का वर्णन किया है । इनमें मैंने जिन ग्रंथों को देखा हे उनमें भाषा-भूपण, लडलित-ठलाम, झलंकार-चंद्रोद्य, झलंकार-रल्लाकर, काव्यामरण, टिकेतराय- भकाश, भाषाभरण, पद्मभरण, गंगाभरण तथा कंठासरण सुख्य हैं। रघुनाथ कवि का 'रसिक-मोहन' ग्रंथ बड़ा खुंदर है। “झलं- कार-रल्लाकर” भाषा-भूषण की एक घकार की टीका है। दूलह का “कंढाभरणु” सचमुच कंठ करने योग्य ग्रंथ है । 'गंगाभरण” ग्रंथ मेरे पितामद्द लेखराजजी का बनाया इुआ है । इसमें सभी उदा- हरण गंगाजी पर घटाए गए हैं । गोकुलदास कायस्थ-रुत “दिस्विजय-भूषण” बड़ा ग्रंथ है। इसमें पुराने आचार्या के उदाह- रण भी संकढित किप गए हैं और न्ज-भाषा-गद्य में उनपर कुछ 'विवेचना भी की गई हे । 'जसवंत-जसोभूषण” के रचयिता कवि- राजा मुरारिदानजी हैं। यह बहुत बड़ा श्रंथ है। मुरारिदानजी ने झलंक्रारों के नामों को ही उनका छक्षण माना है। यही इस ग्रंथ की विशेषता है। नाम में ही च्तण की कट्पना करने से खींचा- तानी का बहुत कुछ ॒झाश्रय लेना पड़ा है और ऐसे उद्योग में सवंत्र सफलता भी नहीं इुई है । “जसवंत-जसोभूषण” झलंकार- शास्त्र का श्राचुनिक ग्रंथ है और इसके र्वयिता की इसके. द्वारा




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