सामयिक प्रतिक्रमणादि पाठ | Samayik Pratikramanadi Path

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Samayik Pratikramanadi Path by दीपचन्द्र जी वर्णी - Deepachandra Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9 है पूण २५ अत्तरा के मन्त्र से १०८ मंत्रों का उपयक्त विधि सो जाप करना या अहंत्सिद्धादायोपाध्याय, सवसाधघभ्यो नम इस्स मन्त्र का या अहत सिद्ध या अखिद्याउसा या अंत या सिद्ध यथा 3 इन मन्त्रों में से किसी एक का अपनी सुविधा के अजुसार १०८ वार जाप करे पश्चात्‌ खड़े होकर प्ूचवत्‌ का्यारस्सग ( ६ साकार मन्त्र जप ) करके उसी दिशा में पुनः अप्रांग नमस्कार करे । इस प्रकार सामायिक पूर्ण करके फिर १२ भावनाओं का संचेग व वैराग्य के अध चितवन करना चाहिए, तथा प्रातःकाल की सामायिक पूर्ण हो चुकने पर भ्रावक के १७ नियमों का भी विचार करके स्वशक्ति अनुसार नियम करना चाहिए ' व १७ नियम य हैं, यथा से आज दिन भर में इतने चार से अधिक भोजन नहीं करू गा, इतने चार से अधिक पानी झादि पेय पदाथ नहीं ग्रहण करूंगा, इतनों व इस प्रकार की सवारियों के सिवाय झन्य सवारियों में नहीं वैठंगा, मैं श्रमुक प्रकार के विस्तरों के र्वाय अन्य पर शयन नहीं करू गा, जैसे पल;, लकड़ी का तग्त, पत्थर की शिला भूमि, चटाइ, घास, गादी आदि, ऐस अमुक २ आसन परही वठगा अन्य पर नहीं, इतने चार से अधिक स्नान नहीं करू गा या स्नान ही नहीं कर भा, अमुक २ जाति के फूल व माला के सिवाय अन्य नहीं सूघंगा, इतर फूनेल आदि अमुक २ के सिवाय शेष का त्याग है, पानादि मुखशुद्धि के पदार्थ अ युक २ के स्िवाय अन्य ग्रहण नहीं करूंगा, अमुक प्रकार के इतने वस्त्र के सिवाय शेष को ग्रहण न करू गा, अजन-संजनादि 'प्रसुक २ के सिवाय और न लगाऊ गा, झमुक २ भूषणों के सिवाय शेष को न पहिरू ना, सोधुन सेवन न करू गा या इतने




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