भेदविज्ञानसार | Bhed Vigyan Saar

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Bhed Vigyan Saar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेदविज्ञानसार ११ बन, पा ली ्थ उन. _.. कट्टर पड रिटि दिा न न ध--. जन अपन, न दि निरनपनय नस (१४) गोतमस्वाभी आये इसलिए भगवान की वाणी खिरी-ऐसा नहीं है; और बागी ख़िरी इसलिए गौतमस्वामी के ज्ञान हुआ--ऐसा भी नहीं है। श्री मददावीर स्वामी को फेवलज्ञान हुआ, इन्द्रों ने समव- शरण की रचना की; ठेरिन छियासठ दिन तर भगवान की दिव्यध्वनि नहीं खिरी । श्रावण बदो एस्म के दिन गौतम खासी आये और वाणी खिरी । परन्तु वहाँ गौतम स्वामी भाये इसलिए वाणी. ख़िरी-ऐसा नहीं है, भर वाणी ख़िरना थी इसढिए गौतम स्वामी आये-ऐसा भी नहीं है । वाणी भर गौतम स्वामी दोनों की क्रियाएं स्वततघ्र हैं । भगवान की वाणी खिरी इसडिए गौतम स्वामी को ज्ञान हुआ-ऐसा भी वास्तव में नईीं दे । वाणी अचेतन है, उससे ज्ञान नहीं दोता, और गौतम स्रामी आदि जीवों के ज्ञान में समझने की योग्यता हुई इसलिए भगवान की वाणी परि- णमित हुई-ऐसा भी नहीं है । अचेतन परमाणु को कह्दी ऐसी खबर नहीं है कि सामने पात्र जीव छाया है इसलिए मे परिणमित हो ! और भगवान कहीं चाणी के कर्ता नहीं हैं; वाणी तो चाणी के कारण परिणमित होती है, और जो जीव अपना आत्मसखभाव समझने के योग्य दो वह जीव अन्तरपुरुपाथ' द्वारा अपने स्वभावसन्मुख होकर समझता है, उसका ज्ञान अपने ज्ञानस्वभाव के आधार से परिणमिंत होता है । अपने स्वभाव के सन्मुख होकर जानना-देखना भौर आनन्द का अनुभव करना वहद्द आत्मा का. स्वरूप है, परसन्सुख दोकर जाने-ऐसा आत्म! का स्वरूप नददीं हे ।




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