बृहत जैन शब्दार्णव भाग - 2 | Brihat Jain Sabdarnav Bhag - 2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
408
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)- अधिकरण ।
तीक लोकव्यापी एक भखण्ड द्रव्य है, नो स्वयं ठइर-
चेवाले जीव और पुद्नलेंको ठदरनेमें सहकारी होता
है, मेरणा नहीं करता है | जैसे छाया पथिककों ठह-
रनेमें कारण होती है वेसे ही उदासीनपनेसे यह
कारण पढ़ता है। इतना जरूरी है कि यदि इसकी
सत्ता न माने तो कोई वस्तु थिर नहीं रह सकेगी!
यह कोक जो ३४३ घन राजू प्रमाण एक मर्यादा
है यह न रहेगा, यदि अषमें द्व्यको न माना
जायगा | यद्द दवण या. परिणमनशील है, इससे
इसको द्रव्य कहते हैं | इसमें लोकव्यापीपना है |
भर्थात् यढ असंख्यात बहु प्रदेशी है । इसलिये
इतको मस्तिकाय कहते हैं । एक प्रदेशीको अस्ति-
काय नहीं कद सक्ते । नेसे कालद्रव्य (सर्वा० झ०
५ सू० १ व ८व १४ व १७)
अधिकरण-जआाधार-जिमें फोई वात रहे।
पदार्थोको नावनेकी ८-६ रीतियां हैं १ निर्देब-
स्वरूप कथन, २ स्वामित्व-मालिक बताना, ३ साधन-
दोनेका उपाय चताना, ४ अधिकरण-कईा वह रहती
है सो बताना, ५ स्थिति-कालकी मर्यादा बताना,
६ विंधान-उस्तके मेद बताना (सर्वा० ब० १ सु०
७), कर्मोके आानेके कारण जो भाव हैं उनमें अधि-
करण मी है | नीव व अनीदके मेदसे दो प्रकार
मधिकरण दै। नीवाधिकरण थर्थात् नीचोंके भावोंके
आधार, निनसे झूम जाते हैं । वे १०८ तर-
हके होते हैं | संरंभ (इरादा ) समारम्म ( प्रवन्व )
मारम्म (झुर् करना) इन तीनको मन, वच, काब,
च कत्त, कारित जनुमोदना व क्रोध, मान, माया,
लोस इन चार कपायोंसे गुणनेपर ३०८३६ ३०६ ४०८
१०८ भेद होनाते हैं । जैसे क्रोध सहित मन द्वारा
छत संरंभ एक मेद हुआ कि क्रोधके वश हो मनमें
किसीको मारनेका विचार करना । अनीवाधिडरणके
११ मेद हैं. निचके निमित्तवे कमोके आासवका
निमित्त होता है। देखो शव्द अजीवगतरिसा
(परत नि० हु १९९२-९०३ )
बृूहद लेन दाब्दार्णव ।
अधिंगम । [ २८७
ग्रहण करवेकी क्रिया । वह ३५९ क्रियाओमेसे ८वीं'
क्रिया है जो जालवके आानिमें कारणमूत है। देखो
मघारी किया शन्द (प्० खें० छ० ७६) |
अधिकरणिंक-मुख्य नन-गुनरातवमें व्लभी
राजाओंका राज्य था, उस्त समय १८ मधिक्ारी नियत
होते थे-(१) भायुक्तिक या विनियुक्तिक-सुरुप अधि-
कारी (९) द्वांगिक-नगरका अधिकारी (३) मदत्तरि-
झामपति, (४) चाटमट-पुष़िप्त सिपाही, (९) श्रुव
आामका डिसाव रखनेवाला बंधन अधिकारी, तलादी
या कुछहुरणी, (६) भधिकरणिक सुख्य जन, (७)
ढडपाप्तिक-मुख्य पुलिप्त याफिपर, (८) चौरीफर्णिक-
चोर पकड़नेवाला, (९) राजस्थानीय-विदेशी राभ-
मंत्री, (१०) भमालमंत्री, (११) जनुन्यन्ञायान
समुडग्राइक-पिछछाकर बसूल करनेवाछा, (१२)
झौडिकक-लुंगी जाफिप्तर, (१३) भोगिक या भोगो-
बर्काणिक-भामदनी या कर वसुरू करनेवाछा (९४)
वत्मैपाठ-मार्गनिरीक्षक सवार, (१५९) प्रतिप्रक क्षेत्र
और यामोंके निरीक्षक, (१६) विषयपति-प्रांतके
भाकिप्तर' (१७) राष्ट्रति-निलेके आफितर,
(१८0 घामपति-म्ामका सुखिया ( ब० स्पा०
छ० १९० ) |
अधिकारमद-णपनी हुझूमतका घमेड करना |
सम्यग्दप्टीको आठ मद नहीं झरना योख है ।
(दिखो शब्द-मकुस्मात मय प्र० ख०्छ० १४-१४)
यदद सातवां मद है ।
अधिकार वस्तु-उपास्काध्ययन अंगमें १०
वस्तु भधिकार हैं (देखो शब्द अतिवाकविद्या) ।
अधिगम-पदार्थोज ज्ञान, सम्पग्दरीनके दोनेमें
दो बाहरी कारण होते हैं । निंतग और अधिगम
जो परोपदेशसे हो वह लघिंगम है, तथा नो
परोपदेशके विंना हो बह चित है । नित्तमें अन्य
कारण दोसके हैं जैसे नातिस्मरण-पूर्वजन्मकी याद,
निनविषर देन, वेदनाफा अनुभव, निनमदिसाका
दरेन, देवोंकी कऋद्धिका दशन | (सर्वा० अ०
अधिकरणिकी क्रिया-्िंप्ताके उपकरणोंको | सू०- ३-७) |
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