बृहत जैन शब्दार्णव भाग - 2 | Brihat Jain Sabdarnav Bhag - 2

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Brihat Jain Sabdarnav Bhag - 2  by विहारीलाल जी जैन - Viharilal Ji Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- अधिकरण । तीक लोकव्यापी एक भखण्ड द्रव्य है, नो स्वयं ठइर- चेवाले जीव और पुद्नलेंको ठदरनेमें सहकारी होता है, मेरणा नहीं करता है | जैसे छाया पथिककों ठह- रनेमें कारण होती है वेसे ही उदासीनपनेसे यह कारण पढ़ता है। इतना जरूरी है कि यदि इसकी सत्ता न माने तो कोई वस्तु थिर नहीं रह सकेगी! यह कोक जो ३४३ घन राजू प्रमाण एक मर्यादा है यह न रहेगा, यदि अषमें द्व्यको न माना जायगा | यद्द दवण या. परिणमनशील है, इससे इसको द्रव्य कहते हैं | इसमें लोकव्यापीपना है | भर्थात्‌ यढ असंख्यात बहु प्रदेशी है । इसलिये इतको मस्तिकाय कहते हैं । एक प्रदेशीको अस्ति- काय नहीं कद सक्ते । नेसे कालद्रव्य (सर्वा० झ० ५ सू० १ व ८व १४ व १७) अधिकरण-जआाधार-जिमें फोई वात रहे। पदार्थोको नावनेकी ८-६ रीतियां हैं १ निर्देब- स्वरूप कथन, २ स्वामित्व-मालिक बताना, ३ साधन- दोनेका उपाय चताना, ४ अधिकरण-कईा वह रहती है सो बताना, ५ स्थिति-कालकी मर्यादा बताना, ६ विंधान-उस्तके मेद बताना (सर्वा० ब० १ सु० ७), कर्मोके आानेके कारण जो भाव हैं उनमें अधि- करण मी है | नीव व अनीदके मेदसे दो प्रकार मधिकरण दै। नीवाधिकरण थर्थात्‌ नीचोंके भावोंके आधार, निनसे झूम जाते हैं । वे १०८ तर- हके होते हैं | संरंभ (इरादा ) समारम्म ( प्रवन्व ) मारम्म (झुर् करना) इन तीनको मन, वच, काब, च कत्त, कारित जनुमोदना व क्रोध, मान, माया, लोस इन चार कपायोंसे गुणनेपर ३०८३६ ३०६ ४०८ १०८ भेद होनाते हैं । जैसे क्रोध सहित मन द्वारा छत संरंभ एक मेद हुआ कि क्रोधके वश हो मनमें किसीको मारनेका विचार करना । अनीवाधिडरणके ११ मेद हैं. निचके निमित्तवे कमोके आासवका निमित्त होता है। देखो शव्द अजीवगतरिसा (परत नि० हु १९९२-९०३ ) बृूहद लेन दाब्दार्णव । अधिंगम । [ २८७ ग्रहण करवेकी क्रिया । वह ३५९ क्रियाओमेसे ८वीं' क्रिया है जो जालवके आानिमें कारणमूत है। देखो मघारी किया शन्द (प्० खें० छ० ७६) | अधिकरणिंक-मुख्य नन-गुनरातवमें व्लभी राजाओंका राज्य था, उस्त समय १८ मधिक्ारी नियत होते थे-(१) भायुक्तिक या विनियुक्तिक-सुरुप अधि- कारी (९) द्वांगिक-नगरका अधिकारी (३) मदत्तरि- झामपति, (४) चाटमट-पुष़िप्त सिपाही, (९) श्रुव आामका डिसाव रखनेवाला बंधन अधिकारी, तलादी या कुछहुरणी, (६) भधिकरणिक सुख्य जन, (७) ढडपाप्तिक-मुख्य पुलिप्त याफिपर, (८) चौरीफर्णिक- चोर पकड़नेवाला, (९) राजस्थानीय-विदेशी राभ- मंत्री, (१०) भमालमंत्री, (११) जनुन्यन्ञायान समुडग्राइक-पिछछाकर बसूल करनेवाछा, (१२) झौडिकक-लुंगी जाफिप्तर, (१३) भोगिक या भोगो- बर्काणिक-भामदनी या कर वसुरू करनेवाछा (९४) वत्मैपाठ-मार्गनिरीक्षक सवार, (१५९) प्रतिप्रक क्षेत्र और यामोंके निरीक्षक, (१६) विषयपति-प्रांतके भाकिप्तर' (१७) राष्ट्रति-निलेके आफितर, (१८0 घामपति-म्ामका सुखिया ( ब० स्पा० छ० १९० ) | अधिकारमद-णपनी हुझूमतका घमेड करना | सम्यग्दप्टीको आठ मद नहीं झरना योख है । (दिखो शब्द-मकुस्मात मय प्र० ख०्छ० १४-१४) यदद सातवां मद है । अधिकार वस्तु-उपास्काध्ययन अंगमें १० वस्तु भधिकार हैं (देखो शब्द अतिवाकविद्या) । अधिगम-पदार्थोज ज्ञान, सम्पग्दरीनके दोनेमें दो बाहरी कारण होते हैं । निंतग और अधिगम जो परोपदेशसे हो वह लघिंगम है, तथा नो परोपदेशके विंना हो बह चित है । नित्तमें अन्य कारण दोसके हैं जैसे नातिस्मरण-पूर्वजन्मकी याद, निनविषर देन, वेदनाफा अनुभव, निनमदिसाका दरेन, देवोंकी कऋद्धिका दशन | (सर्वा० अ० अधिकरणिकी क्रिया-्िंप्ताके उपकरणोंको | सू०- ३-७) |




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