प्राचीन भारतीय अर्थशास्त्र | Prachin Bharatiy Arthashastra

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Prachin Bharatiy Arthashastra by टी॰ एस॰ पपोला - T. S. Papola

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दंदिक साहित्य. में आथिक विचार | 15 थे, कभी वैमनस्य हो जानें पर सम्पत्ति का विभाजन कुल विभाजन के अनुसार हो जाता था । आय सूती और ऊनी दोनो प्रकार के रंग-बिरगे वस्त्र घारण करते थे, इनको सोनें के तारों द्वारा सुईकारी कर अत्यधिक आकर्षक बनाया जाता था । वेद मत्रों मे वर्णित विशेष बस्त्र हैं अधोवस्त्र, नीवी, उत्तरीय और शाल । कुण्डल, हार, कगुर और मणिबन्घ आदि आभूषणों से वे अपने को सुसज्जित करते थे । नारियाँ अनेक वेणी रखती थी । बे तेल डालकर बालों में कघी करती थी । श्मश्नु रखने की परम्परा थी, भार्य छुरे से दाढ़ी बनाना जानते थे । भार्य-जीवन कृषिप्रधान था । जौ और सम्भवतः गेहूँ मुख्य खाद्यान्न थे । उनके भाहार में फलों और तरकारियों का बाहुल्य रहता था । सम्भवत: आर्यगण मासाहारी भी थे । भेड़-बकरी का माँस खाया जाता था । ठआार्य आसवपायी थे । वे ' सोमरस” पान करते थे । “सोम” वस्तुतः क्या वस्तु थी इस पर मत-वैभिन्न्य है किन्तु इतना निविवाद है कि यह कोई मादक वस्तु थी। इसी कारण ऋषि 'लोग इसका प्रयोग जब-तब वर्जित करते थे । दुन्दुभि, मृदंग और वीणा आदि वाद्य-घोषों से समाहित नृत्य-गान का अत्यधिक प्रचलन था जिसमें नर-नारी सहभागी होते थे। रथ-घावन और अश्व- घावन विहार के साघन थे। दूतक्रीडा परमप्रिय थी । जीवन प्रसन्न और सुखी था। प्रारम्भ में आयों का जीवन युद्धाच्छादित था । वे आखेटप्रिय थे । घनुष- बाण, भाले, बे, परशु भादि से सुमज्जित सेना युद्ध के समय रण-घोष करती थी । शत्रु-शस्त्रो से रक्षार्थ वे कवच धारण करते थे। पशु-पालन और कृषि आरयों की प्रमुख वृत्ति थी । वे गाय, बैल, अश्व, भेड़, बकरी, कुत्ते और गदहे पालते थे गौर हलों से जुताई कर जौ, गेहूँ और तिल भादि अन्न उपनजाते थे । कुओों ओर सरिताओ,से सिचाई करते थे । वैसे कही-कही न्रग्वैदिक दचाओ में सामुद्रिक यात्रा का भाभास मिलता है लेकिन मुख्यत्रया उनका नाविक जीवन नदियों तक ही सीमित था । आर्थिक विचार शान तथा विज्ञान के विस्तृत सागर वैदिक साहित्य में टुर प्रकार के इह- लौकिक तथा विशेष रूप से पारलौकिक विषयों पर पर्याप्त सामग्रो प्राप्त होती है । पर भोतिक सुख की प्राप्ति के लिए आर्थिक साधनों के उपयोग सम्बन्वी विषयों का अपेक्षाकृत सीमित विवरण ही प्राप्त होता हैं। राजकीय कार्य-विषयक विवरणो के सम्बन्ध*में बाद के लेखको--कौटित्य आदि ने अर्थशास्व्रीय सिद्धान्तो




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