प्राचीन भारतीय अर्थशास्त्र | Prachin Bharatiy Arthashastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दंदिक साहित्य. में आथिक विचार | 15
थे, कभी वैमनस्य हो जानें पर सम्पत्ति का विभाजन कुल विभाजन के अनुसार
हो जाता था ।
आय सूती और ऊनी दोनो प्रकार के रंग-बिरगे वस्त्र घारण करते थे, इनको
सोनें के तारों द्वारा सुईकारी कर अत्यधिक आकर्षक बनाया जाता था । वेद
मत्रों मे वर्णित विशेष बस्त्र हैं अधोवस्त्र, नीवी, उत्तरीय और शाल । कुण्डल,
हार, कगुर और मणिबन्घ आदि आभूषणों से वे अपने को सुसज्जित करते थे ।
नारियाँ अनेक वेणी रखती थी । बे तेल डालकर बालों में कघी करती थी ।
श्मश्नु रखने की परम्परा थी, भार्य छुरे से दाढ़ी बनाना जानते थे ।
भार्य-जीवन कृषिप्रधान था । जौ और सम्भवतः गेहूँ मुख्य खाद्यान्न थे ।
उनके भाहार में फलों और तरकारियों का बाहुल्य रहता था । सम्भवत: आर्यगण
मासाहारी भी थे । भेड़-बकरी का माँस खाया जाता था । ठआार्य आसवपायी थे ।
वे ' सोमरस” पान करते थे । “सोम” वस्तुतः क्या वस्तु थी इस पर मत-वैभिन्न्य
है किन्तु इतना निविवाद है कि यह कोई मादक वस्तु थी। इसी कारण ऋषि
'लोग इसका प्रयोग जब-तब वर्जित करते थे ।
दुन्दुभि, मृदंग और वीणा आदि वाद्य-घोषों से समाहित नृत्य-गान का
अत्यधिक प्रचलन था जिसमें नर-नारी सहभागी होते थे। रथ-घावन और अश्व-
घावन विहार के साघन थे। दूतक्रीडा परमप्रिय थी । जीवन प्रसन्न और सुखी
था। प्रारम्भ में आयों का जीवन युद्धाच्छादित था । वे आखेटप्रिय थे । घनुष-
बाण, भाले, बे, परशु भादि से सुमज्जित सेना युद्ध के समय रण-घोष करती
थी । शत्रु-शस्त्रो से रक्षार्थ वे कवच धारण करते थे। पशु-पालन और कृषि आरयों
की प्रमुख वृत्ति थी । वे गाय, बैल, अश्व, भेड़, बकरी, कुत्ते और गदहे पालते
थे गौर हलों से जुताई कर जौ, गेहूँ और तिल भादि अन्न उपनजाते थे । कुओों
ओर सरिताओ,से सिचाई करते थे । वैसे कही-कही न्रग्वैदिक दचाओ में सामुद्रिक
यात्रा का भाभास मिलता है लेकिन मुख्यत्रया उनका नाविक जीवन नदियों तक
ही सीमित था ।
आर्थिक विचार
शान तथा विज्ञान के विस्तृत सागर वैदिक साहित्य में टुर प्रकार के इह-
लौकिक तथा विशेष रूप से पारलौकिक विषयों पर पर्याप्त सामग्रो प्राप्त होती है ।
पर भोतिक सुख की प्राप्ति के लिए आर्थिक साधनों के उपयोग सम्बन्वी विषयों
का अपेक्षाकृत सीमित विवरण ही प्राप्त होता हैं। राजकीय कार्य-विषयक
विवरणो के सम्बन्ध*में बाद के लेखको--कौटित्य आदि ने अर्थशास्व्रीय सिद्धान्तो
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