ईश | ish
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपस खयछः रथ
है; चम सा ( रंसिमुच्य ) इक्द्रिपाईदू से. चन्धन से एथक जान सूर ( घी दर:
घोरेपुसूुए ( भस्मात् ) पम ( लोगात् ) शोक से ( प्रेत्य ) उपक छू
( अमसूतरर ) भसर ( झवन्ति ) होते हि श नर के
कयाथें:--पाि ये सन इन्ट्रिप उसी पी दो शुद्दे शक्ति से जपने २ फारयें
सो फरते हैं, तथापि वह स्वयं इन के जनधन से एप हि । शर्यॉत् जी लास्सा'
के सदूश यए दूखने से लिये भाग्ड, खुनने के लिये कान भीर सनग घरने के
लिये सल सी उपेघ्षा नहीं रखता, रफिन्तु ये सथ अपना रद कस करने में उन
पी अपदषा रखते हैं । इसी दिये यह पान का च्तान, पूदं मन फा सन पत्या दि
है । अधासू उम की सहायता के विना से उठ यन्द्रिय फुल भी नहीं कर
सकते । घेसा जो घोरपसप 5न न्श्स को जानते हैं, थे शेदिक लन्वनों से छूट
कर भोक के अधिकारी एोसे हें ॥ २ ॥ के
न तत्र चशुर्गच्छति न लाग्गच्छति नो सनो न लिव्ठों
न विजानीमों यथेतदर्नाशिष्यादन्पदेव सह्विदितिाद धो
ऊजानादतादाचय 1 दात समरस पूनपा य नस्ताद्ुचचाध्सर, पड
पदाथे:-( सघन ) उस प्त्तत सें ( चहुः ) आंख (न गचछति ) रहीं, जर
सक्रती, एवं ( बग्गू ) वाणी ( नःगच्ल्ति ) नहीं पहुंचती ( नो सनः ) स
सन झो पहुंच सबाता हे । भतएव इस उन को ( न चिदुः ) नद्ों जानते
(न चघिजानीस: ) ौर से रविशेपतः जान सकते हैं, ( यथा ) जिस से ( अनुन
पसिप्यात् ) रशिप्दयादि को उपदेश क्रिया जावे । ( तल ) वद्द ज्लह्न (खिडि्तात्)
ज्ञात चस्तु से ( पमन्पस् एव ) भर ही है ( उथो ) घनन्तर ( भविदिलात )
जान वस्तु से ( झचि ) पर है । ( दति ) इन मक्ार ( सूर्यपास् ) पूवों-
चार्यों के वचन ( शुझुम ) इस सुनते दें ( ये ) जो ( नः ) हारे प्रसि (रात)
सन कर ( विससचक्तिरे ) व्यारूयान कारगये हैं ॥ ३ ॥ कि
माया थे:-सूबे सन्त में दिग्दला 'घक्छे हिं ईके मत्येक घस्ट्रिय पने वियय
के सिदाय दूसरे इन्द्रिय के बर्थ फो को ग्रहण सरने सें अससये है । फिर
असा जो वस्तु भतोन्दिय है ( किनी इल्द्रिय का थी सिघय नहीं ) उस में
इन की गति स्यॉकर हो सकती हे ? हम संसार सें जो कुछ झी ज्ञान उप-
रच करते दें, इन्डझियों के द्वारा । फिर भला वह पभरिसित कान क्यों कर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...