श्रीमद्धागवत | shrimaddhagavt

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shrimaddhagavt  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन्वयपदार्थ सहित । “६ स्वीरुत जो यवावस्थारूप समुद्र है तिसको त आश्रय करेगा तो निश्चय सृत्य को प्राप्त दो वेगा केसा है युवावस्थारूप समुद्र ( आधिव्या घि तरद्डजालजटिलें ) बाधि [ मनके दुख ह और ब्याधि [ शरीरके दख रूप तरंगों के जाल से व्याप्त दे ( ठृष्णा नदीनां दम ) और तष्णा रुपी नदी का रह है ( देयाहेय विकटप क्पन महा आंवत)पे मेरेको रण करने योग्य है यह त्यागने योग्य दे यही कठिन भैंवर है जिस में ( विवेकअद्ित ) विवेक से रदित है ( कामक्रो- धमहाभपं ) और कामक्रोधरूप महा भयडर मगर मच्छ जन्तु हैं जिसमें इसप्रकार दुख के लिघुरूप युवा अवस्था में हे शिष्य ! त ममत्व क रगा। तो निश्चय मृत्यु को प्राप्त होवबेगा । व सृद्धावस्था की झधमता को निरुूपण करेंदें व्याधिव्याठशहं विवेक विकंद्याशा पिशाच्याश्रयं चिंता जजरितांग लोभ दढित कातादि हासास्पदम्‌॥ आठ- स्यादि जढेन ए्णमभितो जीणेजरा कूपकं तं चेदाश्रयसे विवेक मतिमंद्‌ सृत्युस्तदा ते धुमव ॥ १९ ॥




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