श्रीमद्धागवत | shrimaddhagavt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अन्वयपदार्थ सहित । “६
स्वीरुत जो यवावस्थारूप समुद्र है तिसको त
आश्रय करेगा तो निश्चय सृत्य को प्राप्त दो
वेगा केसा है युवावस्थारूप समुद्र ( आधिव्या
घि तरद्डजालजटिलें ) बाधि [ मनके दुख ह
और ब्याधि [ शरीरके दख रूप तरंगों के जाल
से व्याप्त दे ( ठृष्णा नदीनां दम ) और तष्णा
रुपी नदी का रह है ( देयाहेय विकटप क्पन
महा आंवत)पे मेरेको रण करने योग्य है यह
त्यागने योग्य दे यही कठिन भैंवर है जिस में
( विवेकअद्ित ) विवेक से रदित है ( कामक्रो-
धमहाभपं ) और कामक्रोधरूप महा भयडर
मगर मच्छ जन्तु हैं जिसमें इसप्रकार दुख के
लिघुरूप युवा अवस्था में हे शिष्य ! त ममत्व क
रगा। तो निश्चय मृत्यु को प्राप्त होवबेगा ।
व सृद्धावस्था की झधमता को निरुूपण करेंदें
व्याधिव्याठशहं विवेक विकंद्याशा
पिशाच्याश्रयं चिंता जजरितांग लोभ
दढित कातादि हासास्पदम्॥ आठ-
स्यादि जढेन ए्णमभितो जीणेजरा
कूपकं तं चेदाश्रयसे विवेक मतिमंद्
सृत्युस्तदा ते धुमव ॥ १९ ॥
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