अनुरागरस | anuragras

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
anuragras  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अचुरागरस । . १४ नारायण टिंग संतके गये न होय बिगार ॥ ज्यों बिन मोल सुगंधिता मिछे समीप अतार ॥७६॥ ._ ः अथ सतढशण तजि परअवणुण नीरकूं खीरणुणन सों प्रीति ॥ हंस संत को सबंदा नारा यण यह रीति. ॥ ७७ ॥. तनकमान सनमे नहीं सबसों राख त प्यार॥ नारायण ता संत पे वार वार बढ़िह्दार ॥ ७८ ॥ अति कपाठ संतोष इति यगढ चरम पश्रीत ॥ नारायण ते संत वर कामढ़ वचन विनात ॥ ७९ ॥ उदासीनजगसा रहें यथा . घान




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now